बुधवार, 19 अक्टूबर 2016

तुम्हारे बिन...

मैं, मेरी आशिकी, मेरा पागलपन, सब अधूरा है तुम्हारे बिन
कुछ तो बोलो क्यों खमोश बैठी हो, मुझे जीना नहीं तुम्हारे बिन
चलो जी तो लूंगा जीने में क्या है, पर जीना संभव नहीं तुम्हारे बिन
सोच के रुह कांपती है, कि तुम मुझसे मिलो दूर हो
मेरा घर, मेरा मंदिर, मेरा जहान.. सब विरान है तुम्हारे बिन
एक दिन सोचा तो था, तुमको भूल जाऊगा
पर जिंदगी दुश्वार है मेरी, जिना मुमकिन नहीं तुम्हारे बिन
चलो ठोड़े से फासले ही कम करलो, जिंदगी जहन्नुम है मेरी तुम्हारे बिन
अच्छे से सोच लो, हमारा कोई नहीं इस जहान तुम्हारे बिन
एक दिन खाली बैठकर विचार तो करों, क्या पता बात बन जाए
हमे तो एक पल भी गवारा है, तुम्हारे बिन
अब तो इंतजार खत्म करो, हमारी जिंदगी में आ जाओ
हमारी दुनिया, शहर, समुद्र, जंगल सब सूखा है, तुम्हारे बिन
मेरी छोड़ो, इनको चकाचौंद करने के खातिर तो आ जाओ
वरना ये भी हमारी तरह ऐसे ही तड़प कर मर जाएंगे तुम्हारे बिन
ये मत सोचना, मरने के बाद सब तुमको भूल जाएंगे
ये मरकर भी अमर रहेंगे, मेरी तरह ये भी नहीं रह सकते तुम्हारे बिन
इनकी आरजू है तुम्हें छुने, देखने, महसूस करने की
इनकी खुशी के लिए तो हमारे पास आ जाओ एक दिन
अब कटती नहीं है रातें, ना गुजरते है कमब्खत ये दिन
शरीर तो कब का गवा दिया, रुह शमशान में बैठी है तुम्हारे बिन
जिस दिन आओगी लंका से लेकर आयोध्या तक दिप जगमगाएंगे
फिलहाल तो यहां घना अंधेरा है, तुम्हारे बिन...

   



1 टिप्पणी:

अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय प्रेम कथा

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