कितनी छोटी सी हैं ये दुनिया मेरी, एक मैं हूं....एक मोहब्बत तेरी !
कोई तुमसे पुछे कौन हूं मैं, तुम कह देता कोई खास नहीं!
एक दौस्त है कच्चा-पक्का सा,एक झुठ है आधा सच्चा सा!
जस्बात को ढ़कने की ख़ातिर, एक बहाना है अच्छा सा !
उम्र का एक साथी है, जो दूर होकर भी पास नहीं!
कोई तुमसे पुछे कौन हूं मैं, तुम कह देता कोई खास नहीं!
एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है....यादों में जिसका एक चहरा सा रह जाता है!
यू तो उसके ना होने का कोई गम नहीं है, पर कभी कभी आंखो से दर्द बनकर बह जाता है!
रहता तो वैसे मेरे खयालों में है, पर इन आंखो को उसकी तलाश नहीं
कोई पुछे तुमसे कौन हूं मैं, तुम कह देता कोई खास नहीं!
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