शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2016

मैें,मेरा दर्द और वो

बहुत मशहूर हो दुनिया में, इस पर ज्यादा ना तुम इतराया करो
बहुत गूरूर है खुद पर, मगर इतना ना तुम बलखाया करो
वो दिन भी तो तुम याद करों, जब कहती थी रातों में मिलने आया करो
रातों में कितना सताया मुझे, इस बात का है तुम्हें एहसास कहां
कितनी दूर चाली गई मुझसे, अब और दूर जाने की जिद मत करो
बड़े सवाल मेरे पास, जो आजकल मैं खुद से करता हूं
तुम्हारे भी कुछ सवाल होंगे, वो सवाल आकर तुम मुझसे करो
इस छोटी सी दुनिया में ना जाने तुम कही खो गई हो
मैं ढुनता रहता हूं तुम्हें, इन गलतियों से मुझे रोका करो
कामयाब हो तुम, ये सफर तुमने खुद ही चुना है
मैं दुआ करुगा रब से, बाद में अफसोस ना करो
तुम्हार था... तुम्हारा हूं, तुम्हारा रहूँगा मैं सदा
अगर तुम इस बात से कभी परहेज ना करो
सफर की राहों में तुम तेजी से दौड़ी हो
निकल जाऊ ना मैं आगे, मुझे मजबूर ना करो
ये जज्बात है मेरे, इसे शायरी ना समझो तुम
मोहब्बत है ये मेरी, इसे तुम शेर ना समझा करो
मैं तुमसे प्यार करने की, खातिर दुनिया में आया हूं
फक्र करो इस बात पर, यू अफसोस ना करो
चला जाऊगा दुनिया से, ये सब कुछ छोड़-छाड़ कर
मैं नहीं चाहता, जाने के बाद मुझे तलाश तुम करो





गुरुवार, 27 अक्टूबर 2016

तलाक, तलाक, तलाक

एक लड़की थी मासूम सी... अभी उसको सही गलत की समझ नहीं थी... सातवीं क्लास में पढ़ती थी वो... मैडम के सवाल पुछने पर अब भी उसकी जवान लड़खड़ाती थी.... उसके अरमान तो सितारे तोड़ने के थे... वो क्लास में बार-बार बोलती थी मुझे बहुत बड़ा इंसान बनना है... मैं चांद पर जाना चाहती हूं... आसमान को छुना चाहती हूं.... वो छोटी सी लड़की और उसके महंगे-महंगे खूआब... उस लड़की का नाम रिहाना था... परिवार से बहुत गरीब थी बेचारी... घर में सबसे बड़ी बेटी रिहाना... अब्बा जब काम से घर लौटते तो रिहाना को खूब समझाते.... रिहाना हस हस कर सारी बातें सुनती.... समय की इस दौड़ में रिहाना अब 16 साल की हो चुकी थी... पर उसकी सोच उसकी ऊम्र से कई ज्यादा बड़ी थी ठिक उसके खूआबो की तरह.... घर में अब्बा की तबैयत भी ख़राब रहती थी... घर के खर्च चलना मुश्किल था... घर के बिगड़ते हालात देख मां ने कोठियों में बर्तन, कपड़े धोने का काम करना शुरू कर दिया था... छुट्टी वाले दिन रिहाना भी अम्मी के साथ काम पर पर जाती थी... घर के हालात देख उसके सपने एक के बाद एक टूटते जा रहे थे.... पर कही ना कही एक आस बाकी थी.... फिर अचानक एक दिन अब्बा की तबैयत ज्यादा ख़राब हो गई... उस वक्त घर में सिर्फ 325 रुपय ही थे... हकीम ने बताया की अब्बा को टि.बी की बिमारी है.... रिहाना और अम्मी दोनों अंदर से पूरी तरह टूट चुके थे.... हकीम साहब ने अब्बा को बिल्कुल काम करने को मना किया था... अब घर की सारी जिम्मेदारी अम्मी और रिहाना के ऊपर थी... इसके बाद रिहाना ने अपने सपनो के साथ समझोता कर स्कूल जाना छोड़ दिया... एक बार को अम्मी ने बोला तो स्कूल मत छोड़ पर वो भी मजबूर थी... घर का खर्च उठाना मुश्किल था... तो फिर अम्मी ने रिहाना को भी काम पर लगा दिया.... रिहाना और अम्मी के सारे पैसे अब्बा की दवाई और दोनों बहनो की पढ़ाई में लग जाते थे... पर रिहाना ने ठानी थी कि वो अपनी बहनो को खूब पढ़ाएगी... समय बीत रहा था और अम्मी को रिहाना के निकहा की चिंता सताने लगी थी... जबकी रिहाना अभी महज़ 16 साल की थी... कई बार अम्मी ने रिहाना को बोला भी पर रिहाना ने उनकी बात को झट से मना कर दिया... अम्मी ने रिहाना के लिए एक लड़का देखा रखा था... वो रिहाना के कानपुर वाले खालू का बेटा याकूब था... ऑटो चलाने का काम करता था... अम्मी को वो पसंद भी था... पर रिहाना समझदार थी.. और अम्मी को समझाती थी...और जब भी अम्मी इस बारे में बात करती तो वो टाल देती... क्योकी याकूब की पहले भी एक बार शादी हो चुकी थी... उसको चिंता सता रही थी की उसके जाने के बाद अम्मी घर को अकेला कैसे संभाल पाएगी... पर उस दिन अम्मी ने भी ठान ली और रिहाना को साथ बैठाकर लाख बार समझाया.... उस दिन अब्बा भी वहां मौजूद थे... अब्बू अम्मी रिहाना को अपनी बातों से उन सपनो में वापस लेकर जा रहे थे जो वो बहुत पहले देख कर छोड़ चुकी थी... अम्मी का कहना था कि वो तुझे खुश रखेगा... हमे तो तुझे एक ना एक दिन छोड़कर जाना ही है... तेरे बाद तेरी दोनों बहनो की भी शादी करनी है... घर की छोड़ रिहाना अब मन ही मन कई सपने एक बार फिर देख रही थी.... अम्मी ने रिहाना के निकाह को कुछ रुपए पहले से ही जोड़ रखे थे... उन ठोड़े से पैसो में ही अम्मी ने रिहाना का निकाह किया.... निकाह के हफ्तें भर तक रिहाना बहुत खुश थी... एक एक कर उसके सारे सपने पूरे होते जा रहे थे... धीरे-धीरे वो अपनी नई दुनिया में कदम रख रही थी... पर फिर कुछ ही दिनो बाद याकूब ने रिहाना को मारना-पीटना शुरु कर दिया... और उससे पैसो की मांग करने लगा... फिर अगले ही हफ्ते रिहाना अपने घर आई तो अम्मी ने पुछा भी तो रिहाना ने याकूब के बारे में कुछ नहीं बताया.... उसने सोचा की समय के साथ सब बदल जाएगा... दो दिन बाद फिर रिहाना को याकूब का फोन आया... शायद फोन पर वो रिहाना को पैसो के लिए बोल रहा था... क्योकी याकूब ने उसको घर से पैसे लाने के लिए बोला था... इन बातों के बीच ना जाने याकूब ने फोन पर ऐसा क्या बोला कि रिहाना के हाथ से एक दम फोन गिर गया... और वो जोर जोर से रोने लगी.... उस वक्त अम्मी वहीं मौजूद थी... अम्मी ने पुछा तो रिहाना ने कुछ ना बताया और रोते रोते कमरे में जाकर झट से कमरे का दरवाजा बंद कर लिया.... अम्मी ने कई बार दरवाजे को पीटा... पर अंदर से कोई आवाज नहीं आई तो अम्मी काफी डर गई... वो जल्दी ही घर के बाहर गई और लोगों को बुलाया... जब कमरे का दरवाजा तोड़ा... तो रिहाना पंखे से झुल रही थी.... अम्मी तो वही पर बेहोश हो चुकी थी अब्बा की आंखे आंशू से लाल थी... पर इन सबके बीच रिहाना की सांसे अभी भी चल रही थी.... रिहाना को पंखे से उतारा गया और मुंह पर पानी मारा गया तो रिहाना को होश आया.... ना जाने ऐसा क्या हुआ जो रिहाना ने ये कदम उठाया था... आखिरकार रिहाना को याकूब ने फोन पर क्या बोला था? ऐसे ही कई सवाल उस वक्त रिहाना के जवाब का इंतजार कर रहे थे... याकूब के फोन पर बोले गए तीन शब्दों ने रिहाना की जिंदगी पलट कर रख दी थी... याकूब ने फोन पर रिहाना को तलाक...तलाक...तलाक बोल दिया था.... इसके बाद रिहाना को चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा नज़र आ रहा था... उसके बात रिहाना के याकूब से लाख बार बात करने की कोशिश की पर याकूब ने उसकी एक ना सुनी.... वक्त चलता गया... रिहाना ये समझ गई थी की याकूब अब वापस नहीं आने वाला.... शायद रिहाना की गलती थी की वो अपने साथ दाहेज लेकर नहीं गई थी... इसके बाद दिन रात में गुजरे और रातें महिनो में...एक रोज रिहाना को पता चला वो पेट से है... अब तो वो मर भी नहीं सकती थी.... क्योकी उसका धर्म और इंसानियत दोनों ही उसको इस काम की इजाजत नहीं देते... ये बातें कई साल पुरानी है... इस हादसे को बीते लगभग 15 साल हो चुके है... रिहाना की बेटी सलमा अब 10 वीं क्लास में है.... अभी तक रिहाना इंसाफ मांग रही है... याकूब रिहाना के बाद दूसरी शादी कर चुका है....उसके तीन बच्चे भी है... बाद में रिहाना को पता चला की पहली वाली से भी याकूब को एक बच्चा हुआ था... रिहाना आज भी घर घर जाकर लोगों के बर्तन धोती है... अब जब भी सलमा रिहाना से अपने अब्बा के बारे में पुछती है तो वो खमोश हो जाती है... शायद अभी तक उसने सलमा को याकूब के बारे में नहीं बताया... रिहाना आज भी उन तीन शब्दो को नहीं भुल पाई है जिन्होंने उसकी दुनिया उजाड़ दी... और हर किसी से एक सवाल करती है क्या ये संभव है?



शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2016

अगर तुम कहो...

लोट कर के तो आओ ओ महजबीन, अपनी यादें मैं भेजु अगर तुम कहो
फुल खिलने को है शहर भी सज रहे, मैं दिवाली मना लू अगर तुम कहो
उन वादों का क्या वो कसक कहा गई, तुमको मिलने तक की तो फुरसत नहीं
मैं खाली हूं हर पल तुम्हारे लिए, मैं ही मिलने आ जाऊ अगर तुम कहो
तुमने अपना दिवाना बनाया मुझे, रातों में कितना तड़पाया मुझे
अब तो महफिल में आओ, रास्ते में दिल बिछा दू अगर तुम कहो
जिंदगी की इस दौड़ में तुम्हारा साथ चाहिए, हाथों में तुम्हारा हाथ चाहिए
अपने हाथों से छू लू, तुम्हारी ये नाजुक हथेली अगर तुम कहो
तुम मेरी ना थी..ना हो..ना होगी, हर कोई ये मुखालफत करता है
मैं इनको तुम्हारे दिल का हाल सुना दू, अगर तुम कहो
तुम मेरी चाहत हो, तुम दिल की धड़कन हो, नगमें तराना हो दिल का
इन सबको मिलाकर एक ग़ज़ल सुना दूं अगर तुम कहो
तुम मेरे पास होकर भी मुझसे दूर, मैं दूर होकर भी तुम्हारे इतना पास
ये बात सब दोस्त जानते है, तुम्हें भी समझा दू अगर तुम कहो
तुम मेरी हाथों की लकीरों में नहीं, पर जिंदगी का अनमोल पहलू हो तुम
मुझ पर किसका हक़, मै तो सिर्फ तुम्हारा हूं अगर तुम कहो
लोट कर के तो आओ ओ महजबीन, अपनी यादें मैं भेजु अगर तुम कहो

बुधवार, 19 अक्टूबर 2016

तुम्हारे बिन...

मैं, मेरी आशिकी, मेरा पागलपन, सब अधूरा है तुम्हारे बिन
कुछ तो बोलो क्यों खमोश बैठी हो, मुझे जीना नहीं तुम्हारे बिन
चलो जी तो लूंगा जीने में क्या है, पर जीना संभव नहीं तुम्हारे बिन
सोच के रुह कांपती है, कि तुम मुझसे मिलो दूर हो
मेरा घर, मेरा मंदिर, मेरा जहान.. सब विरान है तुम्हारे बिन
एक दिन सोचा तो था, तुमको भूल जाऊगा
पर जिंदगी दुश्वार है मेरी, जिना मुमकिन नहीं तुम्हारे बिन
चलो ठोड़े से फासले ही कम करलो, जिंदगी जहन्नुम है मेरी तुम्हारे बिन
अच्छे से सोच लो, हमारा कोई नहीं इस जहान तुम्हारे बिन
एक दिन खाली बैठकर विचार तो करों, क्या पता बात बन जाए
हमे तो एक पल भी गवारा है, तुम्हारे बिन
अब तो इंतजार खत्म करो, हमारी जिंदगी में आ जाओ
हमारी दुनिया, शहर, समुद्र, जंगल सब सूखा है, तुम्हारे बिन
मेरी छोड़ो, इनको चकाचौंद करने के खातिर तो आ जाओ
वरना ये भी हमारी तरह ऐसे ही तड़प कर मर जाएंगे तुम्हारे बिन
ये मत सोचना, मरने के बाद सब तुमको भूल जाएंगे
ये मरकर भी अमर रहेंगे, मेरी तरह ये भी नहीं रह सकते तुम्हारे बिन
इनकी आरजू है तुम्हें छुने, देखने, महसूस करने की
इनकी खुशी के लिए तो हमारे पास आ जाओ एक दिन
अब कटती नहीं है रातें, ना गुजरते है कमब्खत ये दिन
शरीर तो कब का गवा दिया, रुह शमशान में बैठी है तुम्हारे बिन
जिस दिन आओगी लंका से लेकर आयोध्या तक दिप जगमगाएंगे
फिलहाल तो यहां घना अंधेरा है, तुम्हारे बिन...

   



मंगलवार, 18 अक्टूबर 2016

सफर ‘दार्जिलिंग’ का


ऐसी जन्नत की सैर... जो आपको मत्रमुग्ध कर देगी.... कुदरत के उन खास नजारों की जो आपको स्वर्ग का अहसास करा जाएगी.. और आपके कदम भी चल पड़ेंगे उसी ओर.. चारों ओर बिखरा पड़ा कुदरत का अनमोल खजाना... और ये खूबसूरत नाजारा, चाय बागनों में चाय की पत्तियां चुनती महिलाएं, ठंडी हवाओं के साथ मदहोश कर देने वाला मौसम और टॉय ट्रेन में दार्जिलिंग का सफर... जन्नत का अहसास करा देती हैं... दार्जिलिंग की चाय की खेती दुनियाभर में मशहूर है... भारत सहित कई देशों में दार्जिलिंग से चाय भेजी जाती है... यहां पर चाय की खेती सन 1800 से भी पहले से की जा रही है... 








ब्रिटिश शैली के कई स्कूल आज भी दार्जिलिंग में मौजूद हैं... जहां अपने देश ही नहीं बल्कि नेपाल के छात्र भी शिक्षा पाने के लिए आते हैं। इतिहास बताता है कि आंग्लह-नेपाल युद्ध के दौरान एक ब्रिटिश सैनिक टुकड़ी सिक्किम जाने के लिए छोटा रास्ता तलाश कर रही थी... उस वक्त ब्रिटिश सैनिकों ने दार्जिलिंग की खोज की... इस रास्ते से सिक्किम तक आसानी से पहुंचा जा सकता है... इसी के चलते दार्जिलिंग.. ब्रिटिश के लिए रणनीतिक रूप से भी काफी अहम हो गया था... प्राकृतिक छटाओं से लबरेज ये जगह किसी जन्नत से कम नहीं थी... कहा जाता है कि दार्जिलिंग की फिजाओं में बहती ठंडी हवा और कई दिनों तक होती बर्फबारी अंग्रेजों को खूब पसंद थी... इसके बाद ब्रिटिश लोगों ने धीरे-धीरे यहां बसना शुरू कर दिया... यहां का इतिहास काफी उतार चढ़ाव भरा रहा... बताते चलें कि शुरूआत में दार्जिलिंग सिक्किम का एक हिस्सा था... पर कुछ समय बाद भूटान ने इस पर कब्जा कर लिया... बाद में सिक्किम ने इसे दोबारा अपने कब्जे में कर लिया... इसके बाद 18वीं शताब्दी में सिक्किम ने इसे नेपाल के हाथों गवां दिया... मगर नेपाल भी इस छोटी सी जन्नत पर ज्यादा वक्त तक अधिकार नहीं रख पाया... 1817 में हुए आंग्लन-नेपाल में हार के बाद नेपाल को इसे ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंपना पड़ा... 1840 और 50 के दशक में दार्जिलिंग युद्ध स्थल के रूप में बदल गया... सबसे पहले यहां तिब्बत के लोग आए... और उसके बाद यूरोपियन लोग आए... मौजूदा समय में दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल का एक हिस्सा है... इस शहर का अगर भूगोल देखा जाय तो ये इलाका 3149 वर्ग किलोमीटर में फैला है.. दार्जिलिंग का उत्तरी हिस्सा नेपाल और सिक्किम से जुड़ा है... अक्टूबर से मार्च तक दार्जिलिंग बर्फ की चादर से ढक जाता है... बाकी समय का मौसम हल्का ठण्डा बना रहता है...














दार्जिलिंग की हिमालयी रेल.... जिसे लोग "टॉय ट्रेन" के नाम से जानते हैं... ये ट्रेन दार्जिलिंग के सफर को और खुशनुमा बना देती है... ये ट्रेन जलपाइगुड़ी और दार्जिलिंग के बीच आपका हमसफर बनती है... दार्जिलिंग की टॉय ट्रेन दूसरी ट्रेनों के मुकाबले कुछ खास ही है... पहाड़ों के घुमावदार रास्तों पर मदमस्त चाल से चलती इस ट्रेन में सैलानी दार्जिलिंग में कुदरती नजारे का खूब आनंद उठाते हैं... इस ट्रेन को सन 1879 और 1881 के बीच बनाया गया था.. अंग्रेजों का इस ट्रेन को बनाने का मकशद था ईस्ट इंडिया कंपनी के मज़दूरों को पहाड़ों तक पहुंचाना... तब का दार्जिलिंग का ये शहर आज के दार्जिलिंग से बिलकुल अलग था.. तब वहां सिर्फ 1 मोनेस्ट्री, ओब्ज़र्वेटरी हिल, 20 झोंपड़ियां और करीब 100 लोगों की आबादी थी... पर आज यहां का नज़ारा बिलकुल बदल चुका है... और यूनेस्को ने दार्जिलिंग की हिमालयी रेल को विश्व धरोहर की सूची में शुमार किया है... ये एक अनोखा अनुभव है जिसको देखने हर साल लाखों लोग यहां आते हैं... न्यू जलपाईगुड़ी से दार्जिलिंग तक की सेवा आधुनिक डीजल इंजनों से उपलब्ध कराई जाती है... इस जॉय राइड का अनुभव लेने के लिए आपको अपनी जेब थोड़ी ढ़ीली जरूर करनी होगी... सिलीगुड़ी को दार्जिलिंग की मनोरम पहाड़ियों की सैर को लेकर शैलानियों के बीच काफी लोकप्रिय है.. इसलिए इस ट्रेन में सफर करने के लिए टिकट पहले से ही बुक कराए जाते हैं... 78 किलोमीटर के इस सफर के दौरान 13 स्टेशन पड़ते हैं... न्यू जलपाईगुड़ी के समतल रेलवे स्टेशन से शुरू हुई ये यात्रा हर मोड़ पर कुछ खास अहसास करा देती हैं... शहर के बीचों बीच से गुज़रती दो डिब्बों की टॉय ट्रेन लहराती हुई चाय बागानों के बीचोंबीच से होकर महानंदा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के जंगलों में प्रवेश करती है... इसकी रफ़्तार अधिकतम 20 किमी प्रति घंटा है... आप चाहें तो दौड़ कर इसे पकड़ सकते हैं... हरयाली से भरे जंगलों को पार कर ये पहाड़ों में बसे छोटे छोटे गांवों से होती हुई आगे बढ़ती है... रास्ते में कई जगह रिवर्स लाइन भी पड़ती हैं... जहां रेलवे का एक कर्मचारी घने जंगल में मुस्तैदी से ट्रेन के लिए लाइन बदलता है और एक बार फिर ये सुहाना सफर शुरू हो जाता है... इन हसीन वादियों में आपको ऊंचाई से खेलते कुदरती झरने, अलग-अलग तरह के पेड़ पैधे, सुन्दर सजीले पक्षी और मुस्कुराते पहाड़ी लोग नजर आते हैं... कितने ही लूप और ट्रैक बदलती ये ट्रेन पहाड़ी गांव और क़स्बों को छूकर किसी पहाड़ी बुज़ुर्ग की तरह 6-7 घंटे में धीरे-धीरे दार्जिलिंग पहुंचती है.... इस रास्ते पर पड़ने वाले स्टेशन आज भी अंग्रेज़ों के ज़माने की याद दिलाते हैं... दार्जिलिंग से कुछ पहले घूम स्टेशन पड़ता है इसे सबसे ऊंचाई पर स्थित होने का गौरव मिला है... यहां से आगे चलकर बतासिया लूप पड़ता है.. यहां एक शहीद स्मारक है... जहां से पूरा दार्जिलिंग नज़र आता है... शाम ढलने से पहले ये टॉय ट्रेन आपको दार्जिलिंग पहुंचा देती है... आपके इस सुहाने सफर की हमसफर.. टॉयट्रेन को  आप आजीवन नहीं भुला सकेंगे...


















कुदरत की इस अनोखी छटा को संजोए दार्जिलिंग में जो व्यक्ति एक बार आता है वो बार-बार यहां आने की इच्छा रखता है... बर्फ की चादर ओढ़े इस विशाल चोटी की पृष्ठभूमि में बसे दार्जिलिंग में आप अल्पाइन, साल और ओक के पेड़ों से लैस समशीतोष्ण वनों को दखे सकते हैं... मौसम में परिवर्तन के बावजूद दार्जिलिंग के जंगल आज भी हरे भरे हैं... यहां की इसी खूबी के चलते दार्जिलिंग के पर्यटन को नया आयाम मिलता है... शहर में कुछ प्राकृतिक पार्क भी हैं... जिनको आज भी कुदरत ने संजोकर रखा है... इनमें पड़माजा नायडू हिमालियन जूलॉजिकल पार्क और लॉयड बॉटनिकल गार्डन शामिल हैं.... शाम के समय में आपको इन जगहों पर बड़ी संख्या में प्रकृतिप्रेमी और फोटोग्राफर देखने को मिलेंगे...





























रविवार, 16 अक्टूबर 2016

मैं, मेरा दिल और तुम

तुम थी तो दुनिया थी मेरी, तुम नहीं हो तो विराना सा लगता है
तुम नहीं हो मेरे पास, तो सब कुछ बेगाना सा लगता है
बता तो दो क्या कमी है मुझमे, तुम्हारे बिना सब अंजाना सा लगता है
मैं पागल हूं, आशिक हूं, दिवाना हूं, ये सब लोग कहते है
तुम ये बताओ इतना सब होने के बाद भी ये अपनापन सा क्यों लगता है
बताओं ना तुम तो इतनी दूर हो मुझसे, तो मेरे दिल में क्यों रहती हो
ले जाओ अपनी यादें, मेरा दिल इनके साथ बुझा-बुझा सा रहता है
तुम आज भी मेरे सपनो में आती हो, और फिर आकर चली जाती हो
तुम्हारे यू आने से दिल में हलचल, जाने पर दिल शमशान सा रहता है
तुम मुझसे बहुत अलग हो अच्छे से पता है, जबही तो चुपचाप ये रहता है
ना जाने कितने दर्द सहता है, सब कुछ है इसके पास फिर भी तनहा सा रहता है
रोज कहता है आज उनको भूल जाएगा, पर कहकर उनकी यादो में रहता है
किसी और कि है वो, ये बात दिन में लाख बार इसको समझाता हूं...
ये मेरी एक नहीं सुनता, खामखाह मायूस सा रहता है....
तुम नहीं हो तो ये दिल विराना सा रहता है
सब कुछ इसके पास फिर भी बेगाना सा रहता है

कल तो हद ही हो गई, तुम्हारे जाने के बाद
कह रहा था अब मैं भी जा रहा हूं, उनकी तलाश में उनकी यादो के साथ  
समझाने लगा तो बोला मेरी छोड़, तू भी तो उनके बिना बेजान सा रहता है...
मुझे तो समझा देता है, पर खुद के साए से क्यों दूर रहता है
बता ये सिलसिला कब तक चलेगा... कब तक तू उनके लिए यूही मरेगा
मैं कहता हूं... अब भी वक्त है भूल जा उन्हें, मैं भी भूला दुगा
दोनों साथ में रहेगे, तू हसना मैं जिंदगी गुजार दुगा
इतना सुन कर मैं खमोश हो गया... ना जाने इसकी बातों में कब बेहोश हो गया
जब होश आया तो उसका नाम मेरे लबो पर था, दिल धड़कते हुए बोला मुझे इसी बात का डर तो था
फिर दोनों खामोश हुए और सोचा उनकी यादो के सहारे जिंदगी गुजार देते है
आधी तो कट गई, जो बची है उसे भी काट लेते है..
जीते-जी तो हम दोनों उनको भूल ना पाएंगे, लगता तो है कि वो मरने के बाद भी याद आएंगे
अब भी खाली समय में हम दोनों अक्सर गुफ्तगू करते है, भुला देंगे उन्हें एक दूसरे से ऐसे वादे हम करते है
तुम नहीं हो मेरे साथ, तो हसना भी मुझे बचकाना सा लगता है
तुम थी तो दुनिया थी मेरी, तुम नहीं हो तो विराना सा लगता है

तुम नहीं हो मेरे पास, तो सब कुछ बेगाना सा लगता है

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2016

हमारी अधूरी कहानी...

एक लड़की है अच्छी सी जिससे मेैं प्यार करता हूं
एक लड़की है आधी सच्ची सी जिससे मेैं प्यार करता हूं
पर वो जानकर भी अंजान है कि मैं किससे प्यार करता हूं
थोड़ी सी बड़ी है मुझसे... तो उसके लिए प्यार अपराध है
इस बात को जानता हूं मैं... फिर भी अपराध बार-बार करता हूं..
मैं उससे सच्ची मोहोब्बत और सच्चा प्यार करता हूं...














वो मेरी नहीं हो सकती मुझे एहसास है... पर उसे देखने को दिल बेकरार है
मैने इज़हार तो किया नहीं कभी उसको, तो फिर कहा से उसे इसका आभास है ?
शायद उसकी किसी दोस्त ने बताया होगा, पर उसके लिए तो ये भी पाप है
कहती है मैं उससे बहुत छोटा हूं, और मुझ में ना कुछ खास है!
सुना है कुछ दिन बाद उसकी शादी है, उसके घर वालो को लड़के की तलाश है
मैं खामोश हूं... चुप हूं... मदहोश हूं... शायद मुझे अब भी उसका इंतजार है!
मिली थी मुझे तो खूब रो रही थी, रो-रो कर उसकी आंख लाल हो रही थी...
मुझे उसकी परेशानी का एहसास था पर मैं हलातो के आगे लाचार था!
बस में होता तो उसको गले लगा लेता, और झट से उसे चुप करा देता
कुछ दिन तक कारवां यूही चलता रहा, वो परेशान रही, मैं खामोश रहा
फिर एक दिन वो ऑफिस नहीं आई, उसके घर में किसी की तबैयत खराब थी
बाद में पता चला तबैयत तो एक बहाना था असल में उसको दुसरी जगह जाना था

मैं उदास था, लग रहा था मानो मेरी दुनिया में से कोई अपना खो गया था..
इसी बीच मुझे उससे बहुत प्यार है इस बात का एहसास मुझे अच्छे से हो गया था
दुख तो बहुत था उसके दूर होने का, पर उसको खुश देखना जिंदगी का मकसद था
वो मकसद पूरा होता दिख रहा था, मैं बिखर रहा था मुझे ये भी दिख रहा था
आज महीनो बाद भी उनकी यादें मुझे चैन से सोने नहीं देती
दिल तो रोता है बहुत, पर आंखे रोने नहीं देती

आज भी आधी रात उन्हें ऑनलाइन देखता हूं तो एक डर सा लगता है
वो ना साथ था,ना है, ना होगा मुझे पता है, फिर भी हर पल आपना सा लगता है
वो त्यौहारो पर आज भी याद करता है, पर उसका रिपलाई करने से मन डरता है
पता है मैं उसके लायक नहीं हूं, पर इस बात को भी दिल मामने से मना करता है
आज भी उनकी यादो के सहारे जिंदा हूं, और वो सोचते है मैं भुल गया उन्हें
पर आज भी वो मेरी यादो में है, मेरी सांसो है, मेरे दिल में है
मैं आज भी उनसे सच्ची मोहोब्बत और सच्चा प्यार करता हूं...
एक लड़की है अच्छी सी जिससे में प्यार करता हूं
एक लड़की है आधी सच्ची सी जिससे में प्यार करता हूं





अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय प्रेम कथा

#पार्ट_1 नोट- ये कहानी काल्पनिक हो सकती है इसको अन्यथा न ले बस रोमांच के लिए इसको पढ़े तो बेहतर होगा।। प्यार, मोहोब्बत, इश्क़, वफ़ा ये वो शब्द ...