शनिवार, 17 जुलाई 2021

अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय प्रेम कथा


#पार्ट_1


नोट- ये कहानी काल्पनिक हो सकती है इसको अन्यथा न ले बस रोमांच के लिए इसको पढ़े तो बेहतर होगा।।


प्यार, मोहोब्बत, इश्क़, वफ़ा ये वो शब्द हैं जो हर शख्स की ज़िंदगी में कोई न कोई रूप लेकर आते हैं वैसे तो मैंने इनसब पर बहुत लिखा है पर इस बार का नज़रिया थोड़ा अलग है आपने अपने जीवन में कई पुनर्वास के किस्से सुने होंगे और फिर अपने झट से कह दिया होगा ऐसा तो कुछ नहीं होता पर बाद में उस बात पर विचार किया होगा तो आप उस बात को मानने पर भी विवश हो गए होंगे क्योंकि कही न कही आपके दिल में ईश्वर के प्रति आस्था होगी।।

आज की प्रेम कथा कुछ ऐसी ही रहने वाली है जहां आप रोमांच से भरपूर होंगे आज मेरी कहानी के मुख्य किरदार हैं राजस्थान के रहने वाले पुष्पेंद्र शर्मा पर ये इस कहानी के नायक नहीं है... ऐसा क्यों हैं ये आपको कहानी के अंत में पता चलेगा इस कहानी का नायक बृजेश है जो राजस्थान में पुष्पेंद्र के गांव में ही रहता है... खैर आप पुष्पेंद्र के बार में पहले थोड़ा जान ले पुष्पेंद्र राजस्थान में अपने परिवार के साथ रहता है बृजेश और पुष्पेंद्र गांव से स्कूल खत्म करने के बाद ग्रेजुएशन करने दिल्ली आए पुष्पेंद्र डिग्री हासिल करके वापस गांव लौट गया पर बृजेश दिल्ली में ही एक अच्छी नॉकरी करने लगा पर इनकी दोस्ती बहुत गहरी थी तो ये बहुत अच्छे मित्र थे... पुष्पेंद्र की शुरुआत से ही पूजा पाठ में रुचि थी वो एक साधक था। दोनों अपनी अपनी जिंदगी में खुश थे पुष्पेंद्र की शादी हो चुकी थी पर बृजेश का अभी शादी का कोई विचार नहीं था... वक़्त बीतता गया महीने में 2 बार दोनों दोस्तों की फ़ोन पर बात जरूर होती थी बृजेश जब भी गांव आता तो अपना ज्यादातर वक़्त पुष्पेंद्र के साथ बिताता पर इस बार बृजेश अचानक गांव आया था सुबह का वक़्त था जब पुष्पेंद्र पूजा में लीन था अचानक घर की घंटी बजी पुष्पेंद्र की पत्नी ने दरवाजा खोला तो बाहर बृजेश था... बृजेश ने झटपटा कर पूछा पुष्पेंद्र कहा है तो बीवी ने बताया वो पूजा कर रहे हैं खैर इधर पुष्पेंद्र की पूजा पूरी हुई बीवी कक्ष में आकर बोली बृजेश भइया आए हैं तो पुष्पेंद्र हैरान था क्योंकि इससे पहले जब भी वो गांव आता तो पहले ही सूचना दिया करता था पर आज अचानक... पुष्पेंद्र बहुत से सवाल लिए बैठक में पोहोचा ही कि फटाक से बृजेश ने कहा हमें उड़ीसा चलना है पुष्पेंद्र इससे पहले उससे कुछ बोलता या पूछता वो पुष्पेंद्र का हाथ पकड़ घर से बाहर निकलने लगा ये बहुत अजीब था पुष्पेंद्र ने बिना कुछ सवाल किए दूसरा हाथ बृजेश के कंधे पर रखा और कहा एक एक कप चाय पीकर निकलते हैं ना.. बृजेश वापस सौफे पर बैठ गया और पुष्पेंद्र ने बीवी को चाय का इशारा किया।।

अब पुष्पेंद्र ने धीमी सी आवाज़ में पूछा सब ठीक तो है? तुम्हारी उत्सुकता बता रही है कुछ खुशख़बरी है क्या है उड़ीसा में बताओ जरा?

बृजेश ने चेहरे पर मुस्कान बिखेरते हुए कहा मुझे जीवन साथी मिल गया। उसने मुझे उड़ीसा बुलाया है।।

पुष्पेंद्र ने खटाक से सवाल किया तुम तो दिल्ली में थे तो वो तुम्हें दिल्ली में मिली? उड़ीसा क्या उसके घर वालों से मिलने जाना है ? आराम से कल चलते हैं ना इतनी जल्दी किस बात की है वैसे क्या करती है वो तुम्हारे ऑफिस में है?।।

इतने में चाय आ चुकी थी.।।।

चेहरे पर शिकन के साथ चाय की चुस्की लेते हुए बृजेश ने कहा मुझे नहीं पता वो कहा रहती है क्या करती है बस मैं उससे दो बार ही मिला हूं वो भी चंद मिनटों के लिए पिछली बार वो जब मिली तो उसने कहा था कि 10 दिन के अंदर तुम उड़ीसा आ जाना अगर नहीं आए तो 11वे दिन मैं तुम्हारे घर के सामने जान दे दूंगी... ।।।

पुष्पेंद्र के लिए ये सब असाधारण था उसे किसी अनहोनी का एहसास हो रहा था.. वो कैसी दिखती है? उससे तुम मिले कहा? और उड़ीसा में कहा रहती है ये बताया उसने?

एक साथ तीनों सवाल पुष्पेंद्र ने बृजेश पर दाग दिए... बृजेश ने कहा वो बहुत खूबसूरत है उसके रूप की व्यख्या मैं नहीं कर सकता। पहली बार वो मुझे एक सड़क पर मिली थी बिना कुछ बोले मेरे गले लगकर मुझे चूमने लगी और मुझे उड़ीसा आने को कहा मैं ये सब एक सपना समझ रहा था पर कुछ दिनों बात वो मुझे युमना किनारें मिली और मुझसे बोली तुम क्यों नहीं आए मैं तुम्हारा वहाँ इंतज़ार कर रही हूं वहाँ हम विवाह करेंगे उसने अपना कोई पता तो नहीं दिया पर कहा वो मुझे लेने आएगी।।

इन सब बातों के बाद पुष्पेंद्र भलीभांति समझ चुका था कि जिस इस्त्री के प्रेम में बृजेश है वो कोई साधारण इस्त्री नहीं है... और मन ही मन आभास हुआ कि बृजेश एक बड़ी मुसीबत में है ये रहस्य को जानने की पुष्पेंद्र के मन में भी इच्छा जाग उठी और वो इस मुसीबत में अपने मित्र को भी अकेला नहीं छोड़ना चाहता था दोनों स्टेशन पोहोंचे तत्काल का टिकट लिया और उड़ीसा के लिए निकल पड़े पूरे रास्ते बृजेश उस इस्त्री के किस्से सुनता रहा पर पुष्पेंद्र के दिमाग़ में कुछ और ही चल रहा था वो उस रास्ते पर था जिसकी मंज़िल का कुछ पता नहीं था पूरी रात कशमकश में गुज़री दोपहर ट्रेन उड़ीसा स्टेशन पर रुकी बृजेश प्रेम को महसूस कर मन ही मन खुश हो रहा था पर पुष्पेंद्र के दिमाग़ में सवाल घूम रहा था कि अगर कोई आया नहीं तो बृजेश का दिल टूट जाएगा और कोई आएगा तो वो कौन होगा? 

ऐसे ही बहुत से सवाल थे खैर ट्रेन से उतरते ही मन ही मन पुष्पेंद्र ने ईश्वर से प्राथना की और बृजेश के लिए दुआ मांगी स्टेशन से बाहर ही निकले थे इतने में पीछे से आवाज़ लगी 

हेल्लो... सुनिये

बृजेश और पुष्पेंद्र पीछे पलटे तो देखा कि काले वस्त्र पहने लंबी दाढ़ी रखे एक आदमी खड़ा था उसने कहा 

आ गए आप... 

इतने में बृजेश ने बोला बाबा उस दिन युमना में आप ही उन्हें नाव में बिठा कर ले गए थे न? 

आदमी ने जवाब दिया मैं ही था...

बृजेश ने मेरी और इशारा कर कहा ये मेरा दोस्त पुष्पेंद्र है मेरे साथ आया है जवाब में पुष्पेंद्र ने भी हल्का सा सर झुका कर उस व्यक्ति को अपनी उपस्थिति दर्द कराई.. 

बाबा ने बोला आप भी चलोगे??

बृजेश ने बोला ये मेरे साथ ही है।।।

बृजेश के शब्द सुनते ही उस काले वस्त्र पहने आदमी ने आंखे बंद कर कुछ मंत्र जाप किया पुष्पेंद्र झट से समझ गया कि ये किसी से आदेश ले रहा हैं.. क्योंकि पुष्पेंद्र भी तंत्र मंत्र को बहुत बेहतर समझता था इतने में उस व्यक्ति ने बोला मेरे साथ आओ और गाड़ी में आगे की सीट पर बैठ गया पुष्पेंद्र और बृजेश दोनों पीछे की सीट पर...

बृजेश प्रेम के मोह में था वो बस मुस्कुरा रहा था पर पुष्पेंद्र जागृत था वो इन सब असाधारण गतिविधियों को महसूस कर रहा था गाड़ी चलाने के बाद ये तो तय हो गया था कि इस सफ़र की मंज़िल जरूर हैं चलती गाड़ी में सिर्फ़ बृजेश ही बोल रहा था बाकी सब शांत थे वो बार बार पुष्पेंद्र से सवाल करता जिसका जवाब पुष्पेंद्र गर्दन हिला कर दे देता।।।

कुछ देर बाद गाड़ी एक खंडहर के पास रुकी काले कपड़े वाले व्यक्ति ने इशारा किया कि आप यहां उतर जाए मैं आता हूं प्रेम के मोह में बृजेश ख़ुशी ख़ुशी वहाँ उतर गया और पुष्पेंद्र भी... और काले कपड़े वाला व्यक्ति गाड़ी लेकर चला गया बृजेश की खुशी का ठिकाना नहीं था मानो लग रहा था जैसे उस खंडहर में उसे महल दिख रहा हो पर पुष्पेंद्र सजक था उसे खंडहर और आस पास के बीहड़ साफ दिख रहे थे वो जगह ऐसी थी जैसे मानो वहाँ कई सालों से कोई भी नहीं आया सुबह से शाम हो चुकी थी सूरज ढलने वाला था मंद मंद अंधेरा आसमान में छाने  लगा था और दूर से किसी भेड़िया की रोने की आवाज़ भी आ रही थी वही दूसरी और बृजेश की खुशी का ठिकाना नहीं था परिस्थितियों के विपरीत वो एक अलग ही सुख में था वहाँ से लौटना इस वक़्त असंभव था क्योंकि इस बीहड़ रास्ते पर रात का वक़्त चलना जंगली जानवरों का भोजन बनने समान था ईश्वर का नाम लिए पुष्पेंद्र बृजेश का हाथ पकड़ खंडहर में प्रवेश हुआ....।

वो खंडहर किसी जमाने में एक राजा की हवेली रही होगी मुख्य दरवाज़े से अंदर आए तो एक बहुत बड़ा आँगन था दीवारों पर नज़र पड़ी तो देखा उल्लुओं का एक झुंड दोनों को निहार रहा था मानो कह रहा हो वापस लौट जाओ 

पुष्पेंद्र ने दूसरी और बृजेश को देखा वो बेफिक्र से गीत गुनगुना रहा था... आँगन पार करने के बाद एक बड़ा गरियारा था अब रोशनी एकदम जा चुकी थी पुष्पेंद्र ने अपने बैग से टॉर्च निकाली जैसे ही रोशनी ज़मीन पर पड़ी तो ज़मीन पर धूल जमी पड़ी हुई थी पुष्पेंद्र ने घूम कर टॉर्च अपने पीछे की ओर मारी तो पीछे देखा उस धूल में फर्श पर उनके जूते के निशान बन रहे हैं इसके बाद साफ़ था कि यहाँ लंबे समय से कोई नहीं आया और कोई आता जाता भी हैं तो उसके पदचिन्ह नहीं बनते... मतलब?? इसके बाद पुष्पेंद्र ने टोर्च की रोशनी छत पर मारी तो ढेरों चमकागढ़ झटपटा उठे... अब कई सवाल पुष्पेंद्र के दिलोदिमाग में थे तमाम सवालों के साथ वो उस रहस्य में घुसता जा रहा था... और उसके साथ बृजेश किसी नन्हें बच्चें की तरह मुस्कुराता खिलखिलाता कदम बढ़ा रहा था गरियारा ख़त्म होते ही सामने एक एक बड़ा सा गेट था.. उस पुराने बड़े दरवाज़े पर आकर ख़त्म हो चुका था अब सारे राज और रहस्य इस दरवाज़े के पीछे थे उधर बृजेश दरवाज़ा खोलने की जिद बच्चों की तरह करने लगा और पुष्पेंद्र ने ईश्वर का ध्यान करते हुए दरवाजे को ज़ोर से धक्का मारा जैसे ही दरवाजा खुला पुष्पेंद्र की आंखें फटी की फटी रह गई.... उसके सामने......


अगले भाग का इंतजार करें।।।

रविवार, 11 जुलाई 2021

लोग क्या से क्या हो जाते हैं

 तुम पूछते हो न लोग पागल कैसे हो जाते हैं,

मुझे देखो, बिल्कुल ऐसे ही हो जाते हैं

ख्वाबों का धंधा करती हो न

चलो बताओ रोज़ कितने पैसे हो जाते हैं,

उसे एक पल देखना बड़ा मुश्किल है, उसके देखने से शहर के शहर गुमनाम हो जाते हैं,

तुम हर काम के लिए खुदा को याद करते हो उसके वैसे ही हो जाते हैं,

नाजुक फूल सा उसका लहज़ा है, और झील जैसी उसकी आंखें

यक़ीन मानो उसके स्पर्श से ही बड़े बड़े पत्थर मोम हो जाते हैं,

और बहुत देखे होंगे तुमने शहरभर में रहीसज़ादे,

उससे मिलकर तो अनंत भी शून्य हो जाते हैं।।

#नक्षत्र #शायरी #प्रेम

शुक्रवार, 4 जून 2021

तंत्र, मंत्र, यंत्र और साधना

यक़ीनन ये एक शोध का विषय हैं कुछ लोग इसे अंधविश्वास के रूप में देखते हैं तो कुछ आस्था के रूप में परंतु कुछ लोगों के लिए यही संसार हैं... आज के आधुनिक युग में जीने वाले अधिकतर मनुष्यों के लिए तंत्र-मंत्र एक ढोंग है क्योंकि उन्होंने इसे सिरे से खारिज कर दिया पर पृथ्वी पर बहुत से लोग ऐसे भी हैं जिन्हें इनपर अटूट विश्वास और आस्था हैं जिन लोगों को ये ढोंग लगता है उनसे प्रश्न किया जाए कि इस सृष्टि की रचना कैसे हुई तो वो मोन हो जाएंगे और कुछ अग्ज्ञानी जो खुद को विद्वान समझते हैं वो आपको नए नए तर्क देते मिलेंगे खैर इन सबसे इतर एक जमात उन लोगों की हैं जो इसमें खासा रुचि रखते हैं और इन सब पर शोध में जुटे हैं और डूबते सूर्य के साथ हर रोज़ गहराई में जा रहे हैं इससे अंजान कि जिस सरोवर में उन्होंने डुबकी लगाई है असल में वो एक विशालकाय समुन्द्र हैं जिसकी गहराई मापने के लिए आज तक कोई पैमाना तैयार नहीं हुआ इसके अंदर जितना जाओगे ये उतनी ही विचित्र होता जाएगा।


पर इसमें कोई दौराय नहीं हैं कि आज के यूथ की इन सब विषयों में बेहद दिलचस्पी है वो इन सब बातों को जानना और समझना चाहता हैं यही वज़ह हैं कि सही दिशा न मिलने पर वो भटक जाता है और कई बार तो वाम मार्ग पर निकल जाता हैं जहां से लौटना बड़ा मुश्किल होता है। क्योंकि उस रास्ते में आपको ईश्वर नहीं बल्कि ईश्वरीय शक्तियों को चैलेंज करने वाली चीज़े मिलती हैं वो भी बड़ी आसानी से... जिनको डरते डराते वो सिद्ध कर ही लेता हैं पर उनसे पीछा छुड़ाना उसके लिए भारी पड़ जाता हैं इसके बाद या तो वो खुद को विद्वान समझ अहंकार में डूब जाता हैं या फिर प्रकृति को चैलेंज करता हैं क्योंकि यहां तक चलने के बाद वो संसार में रहकर भी संसार का नहीं रहता। 

दूसरी और एक आदमी कड़ी तपस्या और साधना के बाद ईश्वरीय शक्तियों को प्राप्त करता हैं पर इन्हें पाने के लिए उसे एक लंबा समय और कड़ी मेहनत लगती हैं पर इस लंबी साधना के बाद जो खुशी और आनंद आपको मिलेगा वो अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय होगा। 

कुल मिलाकर ये सब क्रिया, साधना, तंत्र आमजनमानस के लिए है ही नहीं ये कुछ ख़ास के लिए हैं... चाहकर भी आप इसको जानने में असमर्थ रहेंगे पर हां जिनके लिए ये हैं वो लोग साधारण की श्रेणी में नहीं हैं क्योंकि ये एक एहसास मात्र नहीं है ये एक मार्ग है जो आपको साधना से समाधि की ओर ले जाता हैं जो आपको साधारण से असाधारण बनाता हैं वही वाम रास्ता आपको प्रकाश से अंधकार की ओर ले जाएगा वहाँ की सल्तनत के आप राजा भी हो सकते हैं पर इसके बाद आप समाज से बहुत दूर चले जाएंगे... ।।
बस एक सफ़र काल से कपाल का है और दूसरा सूर्य की तपन से चांद की शीतलता का।।
दोनों ही अपनी अपनी जगह विराजमान, सिद्ध और अटल हैं... कोई सूक्ष्म रूप में तो कोई स्थूल।।

सोमवार, 3 मई 2021

अधर में लटकते बंगाल का कौन करेगा बेड़ा पार?

बीते दिनों देश में 5 राज्यों में चुनाव हुए पर चर्चाओं में पश्चिम बंगाल रहा जबकि बंगाल की जनता को इन चुनाव में ख़ासा इंटरस्ट नहीं था वो आज भी अपने लिए 2 वक़्त की रोटी तलाश करने की व्यवस्था में लगी है।


अगर आप अभी अभी 18 से हुए हैं और आपने तस्वीरों में बंगाल देखा है तो यक़ीनन आपके लिए वो खूबसूरत और एडवेंचर वाला हो सकता है पर अगर आप 20 से 25 साल के बीच हैं और राजनीति में इंटरस्ट रखते हैं तो आपके लिए बंगाल के मायने बदल जाएंगे इसी से साथ अगर आप कभी जीवन में बंगाल गए हैं तो फिर आपके दिल में बंगाल के लिए एक ख़ौफ़नाक तस्वीर होगी, इतिहास में जाना तो बहुत दर्दनाक होगा बेहतर है हम बीते कुछ सालों में आई खबरों पर ही ध्यान दे इन खबरों में कितना सच है और कितना झूठ ये चर्चा का विषय है, पर ये जरूर है कि आपने इस राज्य में व्यक्तिगत व व्यवसायिक यात्रा की है तो आपके ज़हन में वो आज भी ताज़ा होगी। पुणें से हावड़ा { कलकत्ता }

बॉय ट्रेन से सफ़र आपने कभी किया है तो वो सफ़र आपकी ज़िंदगी का सबसे भयानक सफ़र होगा क्योंकि आपको खुद नहीं पता होगा कि इस यात्रा के बाद आप कभी सही सलामत अपने परिवार के पास वापस लौटकर आ पाएंगे या नहीं। 


इसी के साथ उड़ीसा के झरसूगुड़ा जंक्शन से चढ़ने वाली आर.पी.एफ़ और जी.आर पी के नौजवानों की बटालियन पश्चिम बंगाल के खड़गपुर जंक्शन तक आपके साथ चलती थी क्योंकि एक डर था कि इस दौरान कोई भी नक्सली या आतंकवादी आपकी ट्रेन को ब्लास्ट ना कर दे या सवारियों का अपहरण कर ले। आठ घंटे का यह सफ़र कितनी दहशत भरा होता होगा इसका आप अंदाज़ा लगा सकते हैं शर्मनाक ये है कि आज भी यह ख़ौफ़नाक सफ़र बदस्तूर जारी है। कितनी ही बार जब ट्रेन किसी सुरंग से होकर निकलेगी तो आपको एहसास भी नहीं होगा कि कब कोई गोली या पत्थर आपको आकर घायल कर दे। 


इतिहास में जाकर देखेंगे तो जानेंगे कि 20 नवंबर 2006 में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रैस ट्रेन को भी इसी तरह नक्सवादियों ने अपना निशाना बनाया था। इस हमलें में न जाने कितने लोगों ने अपने परिवार को खो दिया व बहुत से अपाहिज लोग उस दर्दनाक मंज़र को अभी भी बया करते दिख जाएंगे। इस घटना के बाद उस रास्ते पर से जो भी ट्रेनें रात के समय गुज़रती थीं उनकी समय सारिणीं को बदल दिया गया था। जिन्हें वापस अपने सुचारू रुप में शुरू करने में दस वर्षों का समय लगा। वो भी पूरी तरह से हथियारबंद पुलिस वालों व फ़ौजियों की देखरेख में।  जिन्हें एक निश्चित सफ़र के समय में ट्रेन के सभी खिड़कियों व दरवाज़ों को बंद करना पड़ता था और यात्रियों को सख्त हिदायत दी जाती थी कि किसी भी तरह खड़गपुर जंक्शन पहुंचने से पहले वो बाहर ना झांकें ना ही खिड़की व दरवाज़े को खोलें। आज भी हम कभी आप उस रास्ते से गुज़रेंगे तो आपकी आत्मा कांप उठेगी। किसी तरह आप सही सलामत कलकत्ता पहुंच जाए तो आप ईश्वर का साधुवाद जरूर करेंगे। 


अगर आप बंगाल के लोगों का जीवन देखेंगे तो आपको भी दया आ जाएगी क्योंकि आप मेंन शहर या आसपास के इलाकों को छोड़ दें तो आप पाएंगे कि सम्पूर्ण बंगाल व इसके लोग किस तरह भुखमरी व अव्यवस्थित जीवन की कगार पर खड़े हैं। इस बात में किसी तरह की दो राय नहीं कि अगर यहां के लोगों को समुद्र से मछली ना मिलती तो शायद यहां के लोग सब्जी खाने को भी तरस जाते। आज भी आप यहाँ दो सौ रू में आराम से यहां तीनों टाईम खाना खा सकते हैं वो भी किसी अच्छे रैस्ट्रों में।


पर ये भी सच है कि एक दौर में बंगाल अपने बेहतर साहित्य के लिए जाना जाता था पर आज शिक्षा व्यवस्था समेत अपने मूल मुद्दों के लिए तरस रहा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि बंगाल की आधी से ज्यादा जनसंख्या दसवीं भी पास नहीं है। और पूरे बंगाल की जनसंख्या में सिर्फ 5% लोग ही ग्रेजुएट हैं। और ये वो लोग हैं जिनमें से आधे अब इस दुनियां में जीवित ही नहीं हैं। 


देशी दारू की भट्टी में लम्बी लाईन लगाए यहां के पुरुषों का जीवन समय से पहले ही खत्म हो जाता है। यही वजह है कि सबसे जल्दी मृत्यू को प्राप्त होने वाले राज्यों में बंगाल का क्रमांक पहला है।  राजधानी कलकत्ता शहर को छोड़कर आपको किसी भी शहर या गांव में ढंग के अस्पताल आपको नज़र नहीं आएंगे। अगर आपको कोई अस्पताल नज़र भी आ गया तो आप उसे अंदर जाकर देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि आपके यहाँ के खण्डहर या श्मशान इससे कई गुना बेहतर हैं। 


रोज़गार की तो बात ही मत कीजिए क्योंकि कारखानों व कम्पनियों की बातें तो यहां की हुकूमतों ने भी नहीं की। मज़दूरों के अधिकार की बात करने वाले सी.पी.एम संगठन ने पैंतालीस साल तक इस कदर अपने मज़दूरों का साथ दिया कि मालिकों को कंपनी बंद करके दूसरे राज्यों का पलायन करना पड़ा। वहां के कारखाने को आप तलाश करने निकलेंगे तो उन्हें बस आप इतिहास के पन्नों में ही पाएंगे। सोच कर देखिए 70 % पुरुष तो सिर्फ मज़दूर हैं इस राज्य में.. जो संपूर्ण भारत के  कारखाने में उम्मीद से ज्यादा भरे पड़े हैं। जिन्हे ना रहन सहन का ढंग है और ना ही बेहतर खान-पान की ख्वाहिश बस ज़िन्दगी का बोझ लिए जिये जा रहे हैं।


नारियों को देवियों सा सम्मान देने वाले भारतवर्ष में इस राज्य का नाम न ही लिया जाए तो ही बेहतर है महिलाओं की ज़िन्दगी के बारे में जानेंगे तो आपकी आंखें गुस्से से लाल और शर्म से गीली हो जाएंगी क्योंकि संपूर्ण विश्व में मानव तस्करी व देह व्यापार की सबसे ज्यादा सप्लाई किस राज्य में होती है ये जानने गए तो पश्चिम बंगाल उसमे अव्वल आएगा। अगर आप इतिहास टटोलने की कोशिश करेंगे तो पाएंगे कि जिस जिस राज्य में कम्युनिस्ट पार्टियों ने सत्ता सम्भाली है वहां धड़ल्ले से महिलाओं व लड़कियों की खरीद फ़रोख्त होती रही है। फ़िर चाहे वो पश्चिम बंगाल हो या केरल इसमें कुछ नया नहीं है। तलाशने पर इस राज्य में कुछ शहर ऐसे भी मिल जाएंगे जहां मां बाप स्वयं अपनी बेटियों का रातों का सौदा करते हैं। और अगर आपके पास ठीक ठाक पैसा है तो आप लड़की को सीधे खरीदकर भी ला सकते हैं। यहाँ से खरीद कर कुछ लोग उन लड़कियों को अपनी रखैल बना लेते हैं और कुछ राजस्थान व हरियाणा जैसे महिलाओं की कमी से जूझते राज्य के लड़के अपनी पत्नी बना लेते हैं। पर एक खरीदी हुई लड़की से किस तरह का सुलूक़ होता है इसको शब्दों में उतारना शर्मनाक भरा है क्योंकि हक़ीक़त आप भी बेहतर जानते हैं। 


हावड़ा का 'सोनागाछी' पुणें का 'बुधवार पेठ' मुबई का 'कमाठीपुरा' दिल्ली का 'जीबी रोड' तो सिर्फ विश्व के गिने चुने फ़ेमस वैश्या बाज़ार हैं अगर आप  इनमें से कहीं भी जाकर देखें तो वहाँ आपको सिर्फ बंगाली लड़कियों का बोलबाला दिखेगा। 

जहाँ देश कितनी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और महिलाएं मर्दो के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं वहाँ आज भी इस राज्य में 16 साल की औसत आयु है जब लड़कियों की शादी कराई जाती है.. सुनने में बेशक़ अटपटा लगे पर यहाँ नाबालिग लड़कियां मां बन जाती हैं और प्रशासन चैन की नींद सोता रहता हैं। क्योंकि जच्चा व बच्चा उनके स्वास्थ्य होने की चिंता न तो माँ-बाप को है नाही प्रशासन को...किसी को कोई परवाह नहीं। यहां पैदा होने वाली पहली लड़की नाबालिग हाउस वाईफ़ बनती है और हर दूसरी औरत वेश्यावृति की राह में जाती है। 

क्योंकि इस राज्य में अच्छी नौकरी के सपने देखना गुनाह करने बराबर है। राजनीतिक विद्वान तो अपने अपने हिसाब से इसकी तारीफों के पुल बांध देंगे पर गहन सोच विचार करने पर भी आप शायद ही आप बता पाएं कि यह राज्य किस चीज़ के लिए प्रसिद्ध है। इसके कारोबार क्या हैं ? खानपान क्या है ? फिर अंत में आप चाय बागानों का जिक्र कर देंगे।

हर शख्स की बुनियाद ज़रूरते हैं रोटी.. कपड़ा.. मकान पर हैरान कर देने वाला ये है कि आज भी बंगाल को इनके लिए लम्बा संघर्ष करना पड़ रहा हैं। अब अगर मां दुर्गा को लग रहा है कि उसकी बेटी के हांथों में बागडोर अभी रहनी चाहिए तो शेरावाली का जयकारा लगाकर उनकी इस इच्छा का सम्मान कीजिए ।।



शनिवार, 22 अगस्त 2020

मैं तुम्हारे बारे में लिखना चाहता हूँ।

 मैं तुम्हारे बारे में लिखना चाहता हूँ।

पर क्या लिखना चाहता हूं नहीं पता, न जाने तुम्हारे असाधारण से व्यक्तित्व पर लिखना चाहता हूं या फिर तुम्हारे उस चंचल मन पर जिसे समझने में मैं हमेशा नाकामयाब रहा.. सच पूछो तो मुझे इस ख़त की शुरुआत करनी भी नहीं आ रही समझ नहीं आ रहा कहा से शुरू करू...? लिहाज़ा ये तो तय है कि मैं तुम्हें चाहकर भी अपने शब्दों में नहीं उतार सकता... क्योंकि मेरा हर शब्द तुम्हारी ही देन है... जिस तरह मेरी हर कविता तुम से शुरू होकर तुमपर ही खत्म होती है उसी तरह ये ज़िन्दगी है जिसकी हर सांस पर सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा ही नाम लिखा है। खैर जब जब मैं तुमपर लिखना शुरू करता हूं तो मानो दिल में एक अजीब सा भय होता है.. की मैं तुम्हारी लहराती रेशमी जुल्फों का जिक्र करूँगा तो कही तुम्हारी सुर्ख़ काली आँखे न बुरा मान जाए... वोही आंखे जिन में मैं खुद का अक्स देखने की कोशिश करता हूं। और मेरे देखने पर अपना अक्स मुझे धुंधला नज़र आता है... वैसे तो मुझे उनमे पूरी दुनिया नज़र आती है पर उस संसार में अपना कोई अस्तित्व दिखाई नहीं देता। पर तुम्हारी आँखों की बात हो और होठों के जिक्र न हो ये नाइंसाफी होगी...माफ़ करना तुम्हारे इन गुलाबी होठों के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं... जब जब मेरी इनपर नज़र पड़ी है तो मैं सब कुछ भूल गया हूं... कहने में तो अश्लील लगता है पर उस कोहिनूर समान है जिसे चूमना तो सब चाहते पर वो किसी की किस्मत में नहीं क्योंकि ईश्वर ने उसे किसी बेशकीमती शख्शियत के लिए बनाया है... और मैं वो हरकीज़ नहीं हूं... ये मुझे अच्छे से मालूम है इसके बावजूद भी कई बार मेरा दिल मेरे दिमाग़ पर हावी हो जाता है और मैं उन बातों को भी नज़रंदाज़ कर देता हूं जो मैं अक्सर तुम्हें बताता रहता हूं  मैंने तुमसे कई दफ़ा कहा तुम्हें बहुत लंबा सफ़र तय करना है क्योंकि तुम्हारी मंज़िल अभी बहुत दूर है और एक समय बाद वो तुम्हारे कदमों में होगी पर उसके लिए तुम्हें बहुत दूर तक पैदल चलना होगा और जब रास्ते लंबे हो तो अपने साथ फालतू का समान नहीं रखना चाहिए ज्यादा बोझ के चक्कर में कई बार हम मंज़िल से पहले ही दम तोड़ देते हैं... समझदारी इसी में है जरूरत का सामान साथ रखो और आगे बढ़ते रहो...तुम्हें याद है या नहीं? या फिर जैसे मुझे भुलाया मेरी बातों को भी भूला दिया...  खैर मक़सद ये नहीं कि तुम उन बातों को ताउम्र यादों रखो आरज़ू इतनी सी  है कि जब तक तुम इस दुनिया में रहो हमेशा मुस्कुराती रहो तुम्हें पता है जब तुम हस्ती हो तो तुम्हारे लाल गालो की रंगत और निखर जाती है... खैर मुझे तुम्हें एक बात बोलनी है जो आज तक मैं तुमसे कभी नहीं कह पाया पता है तुम्हारे टॉप के सोल्डर से जब कभी कभार तुम्हारी ब्रा की स्टेप दिखती है ना तो मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता... मुझे पता है तुम इसे ओरो कि तरह कोई पाबंदी नहीं समझोगी हो सकता है कि ये तुम्हें थोड़ी ऑकवर्ड जरूर लगे...क्योंकि तुमसे इस तरह की बात मैंने पहले कभी नहीं कि.. पर तुम्हें तो पता है ना 'मैं नए जवाने का लड़का हूं पुराने ख्यालो का' तो बस दिल में था तो बोल दिया... और जैसे हर बार बोलता हूं इस बार भी कहूंगा बातें घुमाने की कला तुमसे बेहतर इस दुनिया में कोई नहीं जानता... तुम्हें याद मैंने कितनी दफ़ा तुमसे अपने दिल की बात कहने की कोशिश की पर तुमने हर बार मुद्दे को कही और ही मोड़ दिया... तुम कभी साथ नहीं रही फिर भी पता नहीं ऐसा क्यों लगता है कि जैसे कल ही तुमने मुझे छोड़ा हो... और मैं बेकूफ़ रोज़ ये सोच कर अपने अंदर खामियां ढूंढने लगता हूं... कि तुम क्यों गई... कितना पागल हूं न मैं? वैसे मैंने एक किताब मैं पढ़ा था जब तुम्हारे पास रहकर कोई तुमसे दूर होता है तो ज़ेहन में दर्द होता है और जब वो तुमसे दूर चला जाता है तो नाभि के आसपास चुभाब होती है... मैं ऐसा महसूस तो बिल्कुल नहीं कर रहा... पर हा... एक बोझ सा है इस दिल पर की काश मैं तुम्हारे जाने से पहले वो सब तुम्हें कह पाता जो मैं तुम्हें हमेशा से कहना चाहता था... काश के तुम्हारे जाने से पहले वाली वो आखरी रात मेरे हिस्से में आ पाती जिसमें मैं तुम्हें उम्रभर से लिए अपनी आंखों में कैद पर पता... काश तुम्हारे हाथों को अपने हाथों में लेकर तुम्हें जिंदगीभर ख़ुश रखने का भरोसा दिला पता... काश के तुम्हारी जुल्फ़े सुलझाते हुए तुम्हें यक़ीन दिला पता की तुम्हारी हर उलझनों को तुमसे दूर ले जाऊंगा.... काश के तुम्हारी उस छोटी सी बिदिया को अपने हाथों से तुम्हारे माथे पर लगा पाता जो हमेशा से ही मेरी चाहत थी... काश के तुम्हारे माथे को चूमकर बता पाता कि मैं तुमसे कितनी मोहोब्बत करता हूं... और तुम्हारे पैरों में पायल पिन्हा कर तुम्हें एहसास करा पाता कि तुमसे मोहोब्बत करने के लिए एक जिंदगी कितनी छोटी है।।


सोमवार, 27 जुलाई 2020

यादगारें_स्कूल (पार्ट 1)

आज लंबे समय बाद वो लड़का स्कूल समय से पोहचा था हर रोज की तरह आज प्राथना शुरू नहीं हुई थी पहले वो जब भी सुबह स्कूल के गेट में घुसता हो उसको स्कूल के टीचर पहले ही रोक लेते और अलग लाइन में खड़ा कर देते जहाँ बाद में उसे उठक-बेठक लगानी पड़ती पर आज ऐसा नहीं था आज मनीष (काल्पनिक नाम)  किसी खास मकसद से स्कूल आया था प्रेरेर कि लाइन में पीछे खड़े मनीष को आज टीचर्स भी अलग नज़र से देख रहे थे क्यों आज मनीष बाकी दिनों से एकदम अलग लग रहा था आज उसके जूतों की पोलिश से लेकर कमीज़ की प्रेस बता रही थी कि बीते दिनों कुछ तो हुआ है... जिसको देख सब अचंभित थे और सबके मन में एक ही सवाल था.. क्या ये बदलाव उम्रभर वाला है या चंद दिन बाद मनीष फिर वैसे पहले की तरह हो जाएगा, नहीं.... मनीष बदल जाएगा... पर आखिरकार इतना बड़ा बदलाव आया तो कैसे आया  और क्यों ? इसके पीछे का राज स्कूल से जुड़ा हर शख्स जानना चाहता था क्योंकि पिछले 9 साल में किसी ने भी मनीष को इस लय में राष्ट्रीयगान और बंदेमातरम गाते नहीं देखा था, वो बाकी दिनों से बिल्कुल अलग था, जैसे ही ड्रम की आवाज़ ने क्लास में जाने का इशारा किया तो मनीष को आज टीचर्स की भीड़ ने घेर लिया था, और आज मनीष ने मुस्कुराते हुए उन्हीं लोगों से बात कर रहा था जिन्हें वो देखना पसंद तक नहीं करता था ये परिवर्तन एक दम अधबुद्ध था सब एक नज़र ताने उस लड़के को देखे जा रहे थे।
पर पीछे खड़े होकर इस बदलाव को बड़े ध्यान से देख रहा था मानो उसने अपनी हाथों में कोई तस्वीर पकड़ी हो और उस तस्वीर से मनीष को मिला रहा हो पर उसकी आंखें बता रही थी कि अभी भी कोई चीज़ है जो मनीष से छूट गई जिस चीज़ की कमी उस शख्स को महसूस हो रही है पर आखिर वो कौनसी चीज़ है? मनीष को घूरती उन आंखों को न जाने मनीष में किस चीज़ की तलाश है शायद उन्हें मनीष के छोटे हुए बाल अच्छे नहीं लग रहे, नहीं ऐसा नहीं है क्योंकी मनीष के बालों की तारीफ़ आज हर कोई कर रहा है पहले लंबे बालों में वो गुंडा जैसा दिखता था फिर ये आंखे मनीष को क्यों घूर रही हैं? और इन आँखों के कदम मनीष की तरफ क्यों बढ़ रहे हैं क्योंकि जिस तरह से ये कदम आगे बढ़ रहे हैं ये मनीष की तारीफ़ तो करने बिल्कुल नहीं आ रहे इन आँखों को देख कर लग रहा है ये सीधे जाकर मनीष के कानों को पकड़ेंगे।

अगले पार्ट मैं उस शख्स का खुलासा होगा....


गुरुवार, 18 जून 2020

ये कैसा ख्याल है?



ये कैसा ख्याल है जो हर रोज़ आ रहा है, किसी और का ख़त मेरे पते पर क्यों आ रहा है।
और ये कैसी सी ज़िन्दगी करदी है उस ख्याल ने मेरी रातों को जगाकर सूरज चढ़ने पर सुला रहा है... ये बेबाक़ होती हवाएं इतनी तेज क्यों चल रही हैं ये कौन है जो मेरे भुझाए हुए चिरागों को फिर जला रहा है...  और उसका तो कोई वास्ता नहीं मेरे शहर की गलियों से ऐसा क्या हुआ जो गली से गुजरता हर शख्स उसके कसीदे पड़ता जा रहा है... पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ अचानक इस तरह ये जिंदगी में क्यों तूफ़ान सा आ रहा है... अच्छा चलो बताओ हुआ क्या है तुम्हें... कौन है जो ये मुझसे आकर बारबार पूछता जा रहा है...
वैसे तू खुद ही अपनी हालात का ज़िम्मेदार है... तू कहता था कि तू तो हकीकत में जीने वाला शख्स है तो फिर क्यों इन ख्वाब के जाल में फसता जा रहा है और तू तो दुनिया को समझाने निकला था कि सपने मत देखो ये बहुत सताते हैं बेकूफ़ी देख अपनी तू इन ख्यालो के नाखून और बाल बड़े करा रहा है... यही ख़त्म नहीं हुआ किस्सा नादानी का तेरा तू तो इनके पैरो में पाज़ेब डालकर इन्हें साड़ी भी पिन्हा रहा है.. अब भी वक़्त है समझ जा ऐसा ही चलता चलता रहा तो वो दिन भी जरूर आएगा जब इन्हें में बिंदिया, टिका, चूड़ियां पहनाकर दूल्हन की तरह सजा रहा है... तुझे पता है कि नहीं ये सब ख्वाब है जिन्हें तू सो कर देखता है... खुद को देख तू कैसे इन ख्यालो के साथ जिंदगी को कितने सुकून से जीता जा रहा है सच बता इस ख्वाब के टूटने का तुझको कोई गम नहीं होगा, तुझे वक़्त ने इतना सिखाया है तू क्यों इन बंजर रास्तों पर नंगेपैर चलता जा रहा है... और तुझे भी अच्छे से पता है कि चंद दिन कि आई ये खुशियां किसी और कि हैं... गज़ब का शख्स है तू ये तेरी कभी नहीं हो सकती दिल को इस बात का एहसास हर रोज़ करा रहा है खैर कुछ दिन ही तो बचे हैं सूरज निकलने में... ये जानकर भी तू क्यों रेगिस्तान में पेड़ लगा रहा है... और ये क्या अजीब सी तमन्ना है तेरी तू क्यों इन बारिशों के मौसम में पतंग उड़ा रहा है...

मेरी मान तो इन ख्यालो से दोस्ती करके इन्हें ज़िन्दगी से रुखसत करदे, तू क्यों इतिहास के पन्नों को पलटना चाह रहा है।
और इन ख्यालो की मंज़िल भी अलग है और रास्ते भी... फिर क्यों किसी और कि मंज़िल की तलाश में अंधेरे भरे रास्ते पर चलता जा रहा है.... चलता जा रहा है ।।


अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय प्रेम कथा

#पार्ट_1 नोट- ये कहानी काल्पनिक हो सकती है इसको अन्यथा न ले बस रोमांच के लिए इसको पढ़े तो बेहतर होगा।। प्यार, मोहोब्बत, इश्क़, वफ़ा ये वो शब्द ...