#पार्ट_1
नोट- ये कहानी काल्पनिक हो सकती है इसको अन्यथा न ले बस रोमांच के लिए इसको पढ़े तो बेहतर होगा।।
प्यार, मोहोब्बत, इश्क़, वफ़ा ये वो शब्द हैं जो हर शख्स की ज़िंदगी में कोई न कोई रूप लेकर आते हैं वैसे तो मैंने इनसब पर बहुत लिखा है पर इस बार का नज़रिया थोड़ा अलग है आपने अपने जीवन में कई पुनर्वास के किस्से सुने होंगे और फिर अपने झट से कह दिया होगा ऐसा तो कुछ नहीं होता पर बाद में उस बात पर विचार किया होगा तो आप उस बात को मानने पर भी विवश हो गए होंगे क्योंकि कही न कही आपके दिल में ईश्वर के प्रति आस्था होगी।।
आज की प्रेम कथा कुछ ऐसी ही रहने वाली है जहां आप रोमांच से भरपूर होंगे आज मेरी कहानी के मुख्य किरदार हैं राजस्थान के रहने वाले पुष्पेंद्र शर्मा पर ये इस कहानी के नायक नहीं है... ऐसा क्यों हैं ये आपको कहानी के अंत में पता चलेगा इस कहानी का नायक बृजेश है जो राजस्थान में पुष्पेंद्र के गांव में ही रहता है... खैर आप पुष्पेंद्र के बार में पहले थोड़ा जान ले पुष्पेंद्र राजस्थान में अपने परिवार के साथ रहता है बृजेश और पुष्पेंद्र गांव से स्कूल खत्म करने के बाद ग्रेजुएशन करने दिल्ली आए पुष्पेंद्र डिग्री हासिल करके वापस गांव लौट गया पर बृजेश दिल्ली में ही एक अच्छी नॉकरी करने लगा पर इनकी दोस्ती बहुत गहरी थी तो ये बहुत अच्छे मित्र थे... पुष्पेंद्र की शुरुआत से ही पूजा पाठ में रुचि थी वो एक साधक था। दोनों अपनी अपनी जिंदगी में खुश थे पुष्पेंद्र की शादी हो चुकी थी पर बृजेश का अभी शादी का कोई विचार नहीं था... वक़्त बीतता गया महीने में 2 बार दोनों दोस्तों की फ़ोन पर बात जरूर होती थी बृजेश जब भी गांव आता तो अपना ज्यादातर वक़्त पुष्पेंद्र के साथ बिताता पर इस बार बृजेश अचानक गांव आया था सुबह का वक़्त था जब पुष्पेंद्र पूजा में लीन था अचानक घर की घंटी बजी पुष्पेंद्र की पत्नी ने दरवाजा खोला तो बाहर बृजेश था... बृजेश ने झटपटा कर पूछा पुष्पेंद्र कहा है तो बीवी ने बताया वो पूजा कर रहे हैं खैर इधर पुष्पेंद्र की पूजा पूरी हुई बीवी कक्ष में आकर बोली बृजेश भइया आए हैं तो पुष्पेंद्र हैरान था क्योंकि इससे पहले जब भी वो गांव आता तो पहले ही सूचना दिया करता था पर आज अचानक... पुष्पेंद्र बहुत से सवाल लिए बैठक में पोहोचा ही कि फटाक से बृजेश ने कहा हमें उड़ीसा चलना है पुष्पेंद्र इससे पहले उससे कुछ बोलता या पूछता वो पुष्पेंद्र का हाथ पकड़ घर से बाहर निकलने लगा ये बहुत अजीब था पुष्पेंद्र ने बिना कुछ सवाल किए दूसरा हाथ बृजेश के कंधे पर रखा और कहा एक एक कप चाय पीकर निकलते हैं ना.. बृजेश वापस सौफे पर बैठ गया और पुष्पेंद्र ने बीवी को चाय का इशारा किया।।
अब पुष्पेंद्र ने धीमी सी आवाज़ में पूछा सब ठीक तो है? तुम्हारी उत्सुकता बता रही है कुछ खुशख़बरी है क्या है उड़ीसा में बताओ जरा?
बृजेश ने चेहरे पर मुस्कान बिखेरते हुए कहा मुझे जीवन साथी मिल गया। उसने मुझे उड़ीसा बुलाया है।।
पुष्पेंद्र ने खटाक से सवाल किया तुम तो दिल्ली में थे तो वो तुम्हें दिल्ली में मिली? उड़ीसा क्या उसके घर वालों से मिलने जाना है ? आराम से कल चलते हैं ना इतनी जल्दी किस बात की है वैसे क्या करती है वो तुम्हारे ऑफिस में है?।।
इतने में चाय आ चुकी थी.।।।
चेहरे पर शिकन के साथ चाय की चुस्की लेते हुए बृजेश ने कहा मुझे नहीं पता वो कहा रहती है क्या करती है बस मैं उससे दो बार ही मिला हूं वो भी चंद मिनटों के लिए पिछली बार वो जब मिली तो उसने कहा था कि 10 दिन के अंदर तुम उड़ीसा आ जाना अगर नहीं आए तो 11वे दिन मैं तुम्हारे घर के सामने जान दे दूंगी... ।।।
पुष्पेंद्र के लिए ये सब असाधारण था उसे किसी अनहोनी का एहसास हो रहा था.. वो कैसी दिखती है? उससे तुम मिले कहा? और उड़ीसा में कहा रहती है ये बताया उसने?
एक साथ तीनों सवाल पुष्पेंद्र ने बृजेश पर दाग दिए... बृजेश ने कहा वो बहुत खूबसूरत है उसके रूप की व्यख्या मैं नहीं कर सकता। पहली बार वो मुझे एक सड़क पर मिली थी बिना कुछ बोले मेरे गले लगकर मुझे चूमने लगी और मुझे उड़ीसा आने को कहा मैं ये सब एक सपना समझ रहा था पर कुछ दिनों बात वो मुझे युमना किनारें मिली और मुझसे बोली तुम क्यों नहीं आए मैं तुम्हारा वहाँ इंतज़ार कर रही हूं वहाँ हम विवाह करेंगे उसने अपना कोई पता तो नहीं दिया पर कहा वो मुझे लेने आएगी।।
इन सब बातों के बाद पुष्पेंद्र भलीभांति समझ चुका था कि जिस इस्त्री के प्रेम में बृजेश है वो कोई साधारण इस्त्री नहीं है... और मन ही मन आभास हुआ कि बृजेश एक बड़ी मुसीबत में है ये रहस्य को जानने की पुष्पेंद्र के मन में भी इच्छा जाग उठी और वो इस मुसीबत में अपने मित्र को भी अकेला नहीं छोड़ना चाहता था दोनों स्टेशन पोहोंचे तत्काल का टिकट लिया और उड़ीसा के लिए निकल पड़े पूरे रास्ते बृजेश उस इस्त्री के किस्से सुनता रहा पर पुष्पेंद्र के दिमाग़ में कुछ और ही चल रहा था वो उस रास्ते पर था जिसकी मंज़िल का कुछ पता नहीं था पूरी रात कशमकश में गुज़री दोपहर ट्रेन उड़ीसा स्टेशन पर रुकी बृजेश प्रेम को महसूस कर मन ही मन खुश हो रहा था पर पुष्पेंद्र के दिमाग़ में सवाल घूम रहा था कि अगर कोई आया नहीं तो बृजेश का दिल टूट जाएगा और कोई आएगा तो वो कौन होगा?
ऐसे ही बहुत से सवाल थे खैर ट्रेन से उतरते ही मन ही मन पुष्पेंद्र ने ईश्वर से प्राथना की और बृजेश के लिए दुआ मांगी स्टेशन से बाहर ही निकले थे इतने में पीछे से आवाज़ लगी
हेल्लो... सुनिये
बृजेश और पुष्पेंद्र पीछे पलटे तो देखा कि काले वस्त्र पहने लंबी दाढ़ी रखे एक आदमी खड़ा था उसने कहा
आ गए आप...
इतने में बृजेश ने बोला बाबा उस दिन युमना में आप ही उन्हें नाव में बिठा कर ले गए थे न?
आदमी ने जवाब दिया मैं ही था...
बृजेश ने मेरी और इशारा कर कहा ये मेरा दोस्त पुष्पेंद्र है मेरे साथ आया है जवाब में पुष्पेंद्र ने भी हल्का सा सर झुका कर उस व्यक्ति को अपनी उपस्थिति दर्द कराई..
बाबा ने बोला आप भी चलोगे??
बृजेश ने बोला ये मेरे साथ ही है।।।
बृजेश के शब्द सुनते ही उस काले वस्त्र पहने आदमी ने आंखे बंद कर कुछ मंत्र जाप किया पुष्पेंद्र झट से समझ गया कि ये किसी से आदेश ले रहा हैं.. क्योंकि पुष्पेंद्र भी तंत्र मंत्र को बहुत बेहतर समझता था इतने में उस व्यक्ति ने बोला मेरे साथ आओ और गाड़ी में आगे की सीट पर बैठ गया पुष्पेंद्र और बृजेश दोनों पीछे की सीट पर...
बृजेश प्रेम के मोह में था वो बस मुस्कुरा रहा था पर पुष्पेंद्र जागृत था वो इन सब असाधारण गतिविधियों को महसूस कर रहा था गाड़ी चलाने के बाद ये तो तय हो गया था कि इस सफ़र की मंज़िल जरूर हैं चलती गाड़ी में सिर्फ़ बृजेश ही बोल रहा था बाकी सब शांत थे वो बार बार पुष्पेंद्र से सवाल करता जिसका जवाब पुष्पेंद्र गर्दन हिला कर दे देता।।।
कुछ देर बाद गाड़ी एक खंडहर के पास रुकी काले कपड़े वाले व्यक्ति ने इशारा किया कि आप यहां उतर जाए मैं आता हूं प्रेम के मोह में बृजेश ख़ुशी ख़ुशी वहाँ उतर गया और पुष्पेंद्र भी... और काले कपड़े वाला व्यक्ति गाड़ी लेकर चला गया बृजेश की खुशी का ठिकाना नहीं था मानो लग रहा था जैसे उस खंडहर में उसे महल दिख रहा हो पर पुष्पेंद्र सजक था उसे खंडहर और आस पास के बीहड़ साफ दिख रहे थे वो जगह ऐसी थी जैसे मानो वहाँ कई सालों से कोई भी नहीं आया सुबह से शाम हो चुकी थी सूरज ढलने वाला था मंद मंद अंधेरा आसमान में छाने लगा था और दूर से किसी भेड़िया की रोने की आवाज़ भी आ रही थी वही दूसरी और बृजेश की खुशी का ठिकाना नहीं था परिस्थितियों के विपरीत वो एक अलग ही सुख में था वहाँ से लौटना इस वक़्त असंभव था क्योंकि इस बीहड़ रास्ते पर रात का वक़्त चलना जंगली जानवरों का भोजन बनने समान था ईश्वर का नाम लिए पुष्पेंद्र बृजेश का हाथ पकड़ खंडहर में प्रवेश हुआ....।
वो खंडहर किसी जमाने में एक राजा की हवेली रही होगी मुख्य दरवाज़े से अंदर आए तो एक बहुत बड़ा आँगन था दीवारों पर नज़र पड़ी तो देखा उल्लुओं का एक झुंड दोनों को निहार रहा था मानो कह रहा हो वापस लौट जाओ
पुष्पेंद्र ने दूसरी और बृजेश को देखा वो बेफिक्र से गीत गुनगुना रहा था... आँगन पार करने के बाद एक बड़ा गरियारा था अब रोशनी एकदम जा चुकी थी पुष्पेंद्र ने अपने बैग से टॉर्च निकाली जैसे ही रोशनी ज़मीन पर पड़ी तो ज़मीन पर धूल जमी पड़ी हुई थी पुष्पेंद्र ने घूम कर टॉर्च अपने पीछे की ओर मारी तो पीछे देखा उस धूल में फर्श पर उनके जूते के निशान बन रहे हैं इसके बाद साफ़ था कि यहाँ लंबे समय से कोई नहीं आया और कोई आता जाता भी हैं तो उसके पदचिन्ह नहीं बनते... मतलब?? इसके बाद पुष्पेंद्र ने टोर्च की रोशनी छत पर मारी तो ढेरों चमकागढ़ झटपटा उठे... अब कई सवाल पुष्पेंद्र के दिलोदिमाग में थे तमाम सवालों के साथ वो उस रहस्य में घुसता जा रहा था... और उसके साथ बृजेश किसी नन्हें बच्चें की तरह मुस्कुराता खिलखिलाता कदम बढ़ा रहा था गरियारा ख़त्म होते ही सामने एक एक बड़ा सा गेट था.. उस पुराने बड़े दरवाज़े पर आकर ख़त्म हो चुका था अब सारे राज और रहस्य इस दरवाज़े के पीछे थे उधर बृजेश दरवाज़ा खोलने की जिद बच्चों की तरह करने लगा और पुष्पेंद्र ने ईश्वर का ध्यान करते हुए दरवाजे को ज़ोर से धक्का मारा जैसे ही दरवाजा खुला पुष्पेंद्र की आंखें फटी की फटी रह गई.... उसके सामने......
अगले भाग का इंतजार करें।।।