ये कैसा ख्याल है जो हर रोज़ आ रहा है, किसी और का ख़त मेरे पते पर क्यों आ रहा है।
और ये कैसी सी ज़िन्दगी करदी है उस ख्याल ने मेरी रातों को जगाकर सूरज चढ़ने पर सुला रहा है... ये बेबाक़ होती हवाएं इतनी तेज क्यों चल रही हैं ये कौन है जो मेरे भुझाए हुए चिरागों को फिर जला रहा है... और उसका तो कोई वास्ता नहीं मेरे शहर की गलियों से ऐसा क्या हुआ जो गली से गुजरता हर शख्स उसके कसीदे पड़ता जा रहा है... पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ अचानक इस तरह ये जिंदगी में क्यों तूफ़ान सा आ रहा है... अच्छा चलो बताओ हुआ क्या है तुम्हें... कौन है जो ये मुझसे आकर बारबार पूछता जा रहा है...
वैसे तू खुद ही अपनी हालात का ज़िम्मेदार है... तू कहता था कि तू तो हकीकत में जीने वाला शख्स है तो फिर क्यों इन ख्वाब के जाल में फसता जा रहा है और तू तो दुनिया को समझाने निकला था कि सपने मत देखो ये बहुत सताते हैं बेकूफ़ी देख अपनी तू इन ख्यालो के नाखून और बाल बड़े करा रहा है... यही ख़त्म नहीं हुआ किस्सा नादानी का तेरा तू तो इनके पैरो में पाज़ेब डालकर इन्हें साड़ी भी पिन्हा रहा है.. अब भी वक़्त है समझ जा ऐसा ही चलता चलता रहा तो वो दिन भी जरूर आएगा जब इन्हें में बिंदिया, टिका, चूड़ियां पहनाकर दूल्हन की तरह सजा रहा है... तुझे पता है कि नहीं ये सब ख्वाब है जिन्हें तू सो कर देखता है... खुद को देख तू कैसे इन ख्यालो के साथ जिंदगी को कितने सुकून से जीता जा रहा है सच बता इस ख्वाब के टूटने का तुझको कोई गम नहीं होगा, तुझे वक़्त ने इतना सिखाया है तू क्यों इन बंजर रास्तों पर नंगेपैर चलता जा रहा है... और तुझे भी अच्छे से पता है कि चंद दिन कि आई ये खुशियां किसी और कि हैं... गज़ब का शख्स है तू ये तेरी कभी नहीं हो सकती दिल को इस बात का एहसास हर रोज़ करा रहा है खैर कुछ दिन ही तो बचे हैं सूरज निकलने में... ये जानकर भी तू क्यों रेगिस्तान में पेड़ लगा रहा है... और ये क्या अजीब सी तमन्ना है तेरी तू क्यों इन बारिशों के मौसम में पतंग उड़ा रहा है...
मेरी मान तो इन ख्यालो से दोस्ती करके इन्हें ज़िन्दगी से रुखसत करदे, तू क्यों इतिहास के पन्नों को पलटना चाह रहा है।
और इन ख्यालो की मंज़िल भी अलग है और रास्ते भी... फिर क्यों किसी और कि मंज़िल की तलाश में अंधेरे भरे रास्ते पर चलता जा रहा है.... चलता जा रहा है ।।
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