शनिवार, 22 अगस्त 2020

मैं तुम्हारे बारे में लिखना चाहता हूँ।

 मैं तुम्हारे बारे में लिखना चाहता हूँ।

पर क्या लिखना चाहता हूं नहीं पता, न जाने तुम्हारे असाधारण से व्यक्तित्व पर लिखना चाहता हूं या फिर तुम्हारे उस चंचल मन पर जिसे समझने में मैं हमेशा नाकामयाब रहा.. सच पूछो तो मुझे इस ख़त की शुरुआत करनी भी नहीं आ रही समझ नहीं आ रहा कहा से शुरू करू...? लिहाज़ा ये तो तय है कि मैं तुम्हें चाहकर भी अपने शब्दों में नहीं उतार सकता... क्योंकि मेरा हर शब्द तुम्हारी ही देन है... जिस तरह मेरी हर कविता तुम से शुरू होकर तुमपर ही खत्म होती है उसी तरह ये ज़िन्दगी है जिसकी हर सांस पर सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा ही नाम लिखा है। खैर जब जब मैं तुमपर लिखना शुरू करता हूं तो मानो दिल में एक अजीब सा भय होता है.. की मैं तुम्हारी लहराती रेशमी जुल्फों का जिक्र करूँगा तो कही तुम्हारी सुर्ख़ काली आँखे न बुरा मान जाए... वोही आंखे जिन में मैं खुद का अक्स देखने की कोशिश करता हूं। और मेरे देखने पर अपना अक्स मुझे धुंधला नज़र आता है... वैसे तो मुझे उनमे पूरी दुनिया नज़र आती है पर उस संसार में अपना कोई अस्तित्व दिखाई नहीं देता। पर तुम्हारी आँखों की बात हो और होठों के जिक्र न हो ये नाइंसाफी होगी...माफ़ करना तुम्हारे इन गुलाबी होठों के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं... जब जब मेरी इनपर नज़र पड़ी है तो मैं सब कुछ भूल गया हूं... कहने में तो अश्लील लगता है पर उस कोहिनूर समान है जिसे चूमना तो सब चाहते पर वो किसी की किस्मत में नहीं क्योंकि ईश्वर ने उसे किसी बेशकीमती शख्शियत के लिए बनाया है... और मैं वो हरकीज़ नहीं हूं... ये मुझे अच्छे से मालूम है इसके बावजूद भी कई बार मेरा दिल मेरे दिमाग़ पर हावी हो जाता है और मैं उन बातों को भी नज़रंदाज़ कर देता हूं जो मैं अक्सर तुम्हें बताता रहता हूं  मैंने तुमसे कई दफ़ा कहा तुम्हें बहुत लंबा सफ़र तय करना है क्योंकि तुम्हारी मंज़िल अभी बहुत दूर है और एक समय बाद वो तुम्हारे कदमों में होगी पर उसके लिए तुम्हें बहुत दूर तक पैदल चलना होगा और जब रास्ते लंबे हो तो अपने साथ फालतू का समान नहीं रखना चाहिए ज्यादा बोझ के चक्कर में कई बार हम मंज़िल से पहले ही दम तोड़ देते हैं... समझदारी इसी में है जरूरत का सामान साथ रखो और आगे बढ़ते रहो...तुम्हें याद है या नहीं? या फिर जैसे मुझे भुलाया मेरी बातों को भी भूला दिया...  खैर मक़सद ये नहीं कि तुम उन बातों को ताउम्र यादों रखो आरज़ू इतनी सी  है कि जब तक तुम इस दुनिया में रहो हमेशा मुस्कुराती रहो तुम्हें पता है जब तुम हस्ती हो तो तुम्हारे लाल गालो की रंगत और निखर जाती है... खैर मुझे तुम्हें एक बात बोलनी है जो आज तक मैं तुमसे कभी नहीं कह पाया पता है तुम्हारे टॉप के सोल्डर से जब कभी कभार तुम्हारी ब्रा की स्टेप दिखती है ना तो मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता... मुझे पता है तुम इसे ओरो कि तरह कोई पाबंदी नहीं समझोगी हो सकता है कि ये तुम्हें थोड़ी ऑकवर्ड जरूर लगे...क्योंकि तुमसे इस तरह की बात मैंने पहले कभी नहीं कि.. पर तुम्हें तो पता है ना 'मैं नए जवाने का लड़का हूं पुराने ख्यालो का' तो बस दिल में था तो बोल दिया... और जैसे हर बार बोलता हूं इस बार भी कहूंगा बातें घुमाने की कला तुमसे बेहतर इस दुनिया में कोई नहीं जानता... तुम्हें याद मैंने कितनी दफ़ा तुमसे अपने दिल की बात कहने की कोशिश की पर तुमने हर बार मुद्दे को कही और ही मोड़ दिया... तुम कभी साथ नहीं रही फिर भी पता नहीं ऐसा क्यों लगता है कि जैसे कल ही तुमने मुझे छोड़ा हो... और मैं बेकूफ़ रोज़ ये सोच कर अपने अंदर खामियां ढूंढने लगता हूं... कि तुम क्यों गई... कितना पागल हूं न मैं? वैसे मैंने एक किताब मैं पढ़ा था जब तुम्हारे पास रहकर कोई तुमसे दूर होता है तो ज़ेहन में दर्द होता है और जब वो तुमसे दूर चला जाता है तो नाभि के आसपास चुभाब होती है... मैं ऐसा महसूस तो बिल्कुल नहीं कर रहा... पर हा... एक बोझ सा है इस दिल पर की काश मैं तुम्हारे जाने से पहले वो सब तुम्हें कह पाता जो मैं तुम्हें हमेशा से कहना चाहता था... काश के तुम्हारे जाने से पहले वाली वो आखरी रात मेरे हिस्से में आ पाती जिसमें मैं तुम्हें उम्रभर से लिए अपनी आंखों में कैद पर पता... काश तुम्हारे हाथों को अपने हाथों में लेकर तुम्हें जिंदगीभर ख़ुश रखने का भरोसा दिला पता... काश के तुम्हारी जुल्फ़े सुलझाते हुए तुम्हें यक़ीन दिला पता की तुम्हारी हर उलझनों को तुमसे दूर ले जाऊंगा.... काश के तुम्हारी उस छोटी सी बिदिया को अपने हाथों से तुम्हारे माथे पर लगा पाता जो हमेशा से ही मेरी चाहत थी... काश के तुम्हारे माथे को चूमकर बता पाता कि मैं तुमसे कितनी मोहोब्बत करता हूं... और तुम्हारे पैरों में पायल पिन्हा कर तुम्हें एहसास करा पाता कि तुमसे मोहोब्बत करने के लिए एक जिंदगी कितनी छोटी है।।


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