गुरुवार, 18 जून 2020

ये कैसा ख्याल है?



ये कैसा ख्याल है जो हर रोज़ आ रहा है, किसी और का ख़त मेरे पते पर क्यों आ रहा है।
और ये कैसी सी ज़िन्दगी करदी है उस ख्याल ने मेरी रातों को जगाकर सूरज चढ़ने पर सुला रहा है... ये बेबाक़ होती हवाएं इतनी तेज क्यों चल रही हैं ये कौन है जो मेरे भुझाए हुए चिरागों को फिर जला रहा है...  और उसका तो कोई वास्ता नहीं मेरे शहर की गलियों से ऐसा क्या हुआ जो गली से गुजरता हर शख्स उसके कसीदे पड़ता जा रहा है... पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ अचानक इस तरह ये जिंदगी में क्यों तूफ़ान सा आ रहा है... अच्छा चलो बताओ हुआ क्या है तुम्हें... कौन है जो ये मुझसे आकर बारबार पूछता जा रहा है...
वैसे तू खुद ही अपनी हालात का ज़िम्मेदार है... तू कहता था कि तू तो हकीकत में जीने वाला शख्स है तो फिर क्यों इन ख्वाब के जाल में फसता जा रहा है और तू तो दुनिया को समझाने निकला था कि सपने मत देखो ये बहुत सताते हैं बेकूफ़ी देख अपनी तू इन ख्यालो के नाखून और बाल बड़े करा रहा है... यही ख़त्म नहीं हुआ किस्सा नादानी का तेरा तू तो इनके पैरो में पाज़ेब डालकर इन्हें साड़ी भी पिन्हा रहा है.. अब भी वक़्त है समझ जा ऐसा ही चलता चलता रहा तो वो दिन भी जरूर आएगा जब इन्हें में बिंदिया, टिका, चूड़ियां पहनाकर दूल्हन की तरह सजा रहा है... तुझे पता है कि नहीं ये सब ख्वाब है जिन्हें तू सो कर देखता है... खुद को देख तू कैसे इन ख्यालो के साथ जिंदगी को कितने सुकून से जीता जा रहा है सच बता इस ख्वाब के टूटने का तुझको कोई गम नहीं होगा, तुझे वक़्त ने इतना सिखाया है तू क्यों इन बंजर रास्तों पर नंगेपैर चलता जा रहा है... और तुझे भी अच्छे से पता है कि चंद दिन कि आई ये खुशियां किसी और कि हैं... गज़ब का शख्स है तू ये तेरी कभी नहीं हो सकती दिल को इस बात का एहसास हर रोज़ करा रहा है खैर कुछ दिन ही तो बचे हैं सूरज निकलने में... ये जानकर भी तू क्यों रेगिस्तान में पेड़ लगा रहा है... और ये क्या अजीब सी तमन्ना है तेरी तू क्यों इन बारिशों के मौसम में पतंग उड़ा रहा है...

मेरी मान तो इन ख्यालो से दोस्ती करके इन्हें ज़िन्दगी से रुखसत करदे, तू क्यों इतिहास के पन्नों को पलटना चाह रहा है।
और इन ख्यालो की मंज़िल भी अलग है और रास्ते भी... फिर क्यों किसी और कि मंज़िल की तलाश में अंधेरे भरे रास्ते पर चलता जा रहा है.... चलता जा रहा है ।।


सोमवार, 8 जून 2020

मुझे नहीं पता ये कोरोना क्या है?


कोरोना कितना खतरनाक है कितना डराने वाला है ये आप किसी भी न्यूज़ चैनल पर देख सकते है... पर मसला ये है कि ये क्यों आया, कहा से आया, कब तक रहेगा, कितनों की मौत होगी, कितने संक्रमित होंगे और भी फला फला। ये भी आपको अलग अलग प्रकार के ज्ञानी अलग अलग तर्क देकर समझा देंगे।
खैर अब आइए मुद्दे पर और इससे होने वाले नुकसान पर जाइए रोजगार और अर्थव्यवस्था की बात नहीं कर रहा और मैं क्यों करू जब सरकार ही नहीं कर रही तो।
इसके आने से हमारे बीच के तनाव को देखिए और सोचिए खुदा ना ख़स्ता कल को ये कोरोना हम में से किसी को हो जाए तो लोग आपको किस नज़र से देखेंगे?
आपके मौहल्ले वाले आपसे बात करेंगे?
आपके कितने रिश्तेदार आपसे दूरी बनाएंगे?
और आपकी मौत हो गई तो आपको कंधा देने के लिए 4 लोगों की व्यवस्था कैसे होगी?
ऐसे ही बहुत सारे सवाल हैं जिसका आप जवाब तलाश करेंगे तो खुद की नज़रों में खुद को गिरा हुआ पाएंगे क्योंकि आपको पता है कि उस मौहल्ले में, उन रिश्तेदारों में, उन कंधा न देने वालों में आप खुद भी शामिल हैं।
शायद हम मंदिर, मज्जिद बंद होने के बाद अपनी संस्कृति को भूल गए हैं क्योंकि हमारे भगवानों ने और पूर्वजों ने हमें ये तो बिल्कुल भी नहीं सिखाया था कि हम किसी को यूही बेसहारा छोड़ दे विदेशों के तो पता नहीं पर हमारा भारत तो ऐसा बिल्कुल नहीं है या फिर हमने इस बीमारी को भगवान से भी बढ़कर मान लिया है जो हम इतना डर गए हैं।
जरूरत है तो बस इस अंधेरे में रोशनी जलाने की,
उन मरीज़ों को अपनापन का एहसास करने की
ताकि उन्हें भी लगे वो अकेले नहीं है।
क्योंकि हम सब उनके साथ खड़े हैं।
क्योंकि वो सब हमारे अपने हैं।
अंत में सौ बातों की एक बात जीवन और मित्यु सिर्फ उसके हाथ में है।
उसे हम चाह कर भी टाल नहीं सकते।
उस परमात्मा के अलावा कोई उसको एक सेकेंड के लिए भी आगे पीछे नहीं कर सकता।

रविवार, 7 जून 2020

न जाने मैं क्या चाहता हूं

मैं सब कुछ खोकर न जाने क्या पाना चाहता हूं,
शायद में खुद को खुद से मिलाना चाहता हूं।
यू तो रिश्ते हज़ारों हैं मेरी जिंदगी में
फिर क्यों मैं सबसे नज़रें चुराकर उससे मिलाना चाहता हूं
हर वक़्त खिलखिलाता गज़ब का वो शख्स है
जभी तो उसे अपना बनाना चाहता हूं।
और ख़ामख़ा मायूस हो रहा है वो शख्स ख्वाबों को सोच कर
मैं भी तो ख्वाबों जीना चाहता हूं मैं कहा उन्हें हकीकत बनाना चाहता हूं।
मैं सझता हूं तुम भी समझो रास्ते अगर है दोनों के
हो सकता है मंज़िल भी अलग हो मैं तो बस कुछ दूर साथ चलना चाहता हूं।
और सोचना मत ज्यादा, न परेशान होना,
मैंने कब तुमसे पूरी ज़िंदगी मांगी, बस कुछ वक़्त हमसफ़र बनकर जीना ही तो चाहता हूं।।

अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय प्रेम कथा

#पार्ट_1 नोट- ये कहानी काल्पनिक हो सकती है इसको अन्यथा न ले बस रोमांच के लिए इसको पढ़े तो बेहतर होगा।। प्यार, मोहोब्बत, इश्क़, वफ़ा ये वो शब्द ...