एक पैगाम जो हर रात आता है,
किसी का ख्याब है जो मुझे सताता है।
दिन में कई बार रुठता है मुझसे, फिर अपने बीते कल पर आंसू बहाता है।
गजब का शख्स वो है, अकेले में रोता है और सबके सामने
मुस्कुराता है।
बेचैन करके रख दिया उसने मुझे, ना मुझसे दूर रहता है ना करीब आता है।
उस इबादत की इबादत क्या करुं, जो इतना कुछ सहकर भी खुद को साधारण
दिखाता है।
उसके लिए कीमती तो नहीं हूं मैं, फिर भी वो सबको मेरे किस्से सुनाता
है।
कोई जब उससे पुछता है कि कौन है वो, तो मेरा चेहरा अपनी आंखो में दिखाता है।
और मैं कैसे साथ छोड़ूं उस शख्स का, जो गुमनाम रास्तों पर मुझे अपना
हमसफ़र बताता है।