बीते दिनों देश में 5 राज्यों में चुनाव हुए पर चर्चाओं में पश्चिम बंगाल रहा जबकि बंगाल की जनता को इन चुनाव में ख़ासा इंटरस्ट नहीं था वो आज भी अपने लिए 2 वक़्त की रोटी तलाश करने की व्यवस्था में लगी है।
अगर आप अभी अभी 18 से हुए हैं और आपने तस्वीरों में बंगाल देखा है तो यक़ीनन आपके लिए वो खूबसूरत और एडवेंचर वाला हो सकता है पर अगर आप 20 से 25 साल के बीच हैं और राजनीति में इंटरस्ट रखते हैं तो आपके लिए बंगाल के मायने बदल जाएंगे इसी से साथ अगर आप कभी जीवन में बंगाल गए हैं तो फिर आपके दिल में बंगाल के लिए एक ख़ौफ़नाक तस्वीर होगी, इतिहास में जाना तो बहुत दर्दनाक होगा बेहतर है हम बीते कुछ सालों में आई खबरों पर ही ध्यान दे इन खबरों में कितना सच है और कितना झूठ ये चर्चा का विषय है, पर ये जरूर है कि आपने इस राज्य में व्यक्तिगत व व्यवसायिक यात्रा की है तो आपके ज़हन में वो आज भी ताज़ा होगी। पुणें से हावड़ा { कलकत्ता }
बॉय ट्रेन से सफ़र आपने कभी किया है तो वो सफ़र आपकी ज़िंदगी का सबसे भयानक सफ़र होगा क्योंकि आपको खुद नहीं पता होगा कि इस यात्रा के बाद आप कभी सही सलामत अपने परिवार के पास वापस लौटकर आ पाएंगे या नहीं।
इसी के साथ उड़ीसा के झरसूगुड़ा जंक्शन से चढ़ने वाली आर.पी.एफ़ और जी.आर पी के नौजवानों की बटालियन पश्चिम बंगाल के खड़गपुर जंक्शन तक आपके साथ चलती थी क्योंकि एक डर था कि इस दौरान कोई भी नक्सली या आतंकवादी आपकी ट्रेन को ब्लास्ट ना कर दे या सवारियों का अपहरण कर ले। आठ घंटे का यह सफ़र कितनी दहशत भरा होता होगा इसका आप अंदाज़ा लगा सकते हैं शर्मनाक ये है कि आज भी यह ख़ौफ़नाक सफ़र बदस्तूर जारी है। कितनी ही बार जब ट्रेन किसी सुरंग से होकर निकलेगी तो आपको एहसास भी नहीं होगा कि कब कोई गोली या पत्थर आपको आकर घायल कर दे।
इतिहास में जाकर देखेंगे तो जानेंगे कि 20 नवंबर 2006 में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रैस ट्रेन को भी इसी तरह नक्सवादियों ने अपना निशाना बनाया था। इस हमलें में न जाने कितने लोगों ने अपने परिवार को खो दिया व बहुत से अपाहिज लोग उस दर्दनाक मंज़र को अभी भी बया करते दिख जाएंगे। इस घटना के बाद उस रास्ते पर से जो भी ट्रेनें रात के समय गुज़रती थीं उनकी समय सारिणीं को बदल दिया गया था। जिन्हें वापस अपने सुचारू रुप में शुरू करने में दस वर्षों का समय लगा। वो भी पूरी तरह से हथियारबंद पुलिस वालों व फ़ौजियों की देखरेख में। जिन्हें एक निश्चित सफ़र के समय में ट्रेन के सभी खिड़कियों व दरवाज़ों को बंद करना पड़ता था और यात्रियों को सख्त हिदायत दी जाती थी कि किसी भी तरह खड़गपुर जंक्शन पहुंचने से पहले वो बाहर ना झांकें ना ही खिड़की व दरवाज़े को खोलें। आज भी हम कभी आप उस रास्ते से गुज़रेंगे तो आपकी आत्मा कांप उठेगी। किसी तरह आप सही सलामत कलकत्ता पहुंच जाए तो आप ईश्वर का साधुवाद जरूर करेंगे।
अगर आप बंगाल के लोगों का जीवन देखेंगे तो आपको भी दया आ जाएगी क्योंकि आप मेंन शहर या आसपास के इलाकों को छोड़ दें तो आप पाएंगे कि सम्पूर्ण बंगाल व इसके लोग किस तरह भुखमरी व अव्यवस्थित जीवन की कगार पर खड़े हैं। इस बात में किसी तरह की दो राय नहीं कि अगर यहां के लोगों को समुद्र से मछली ना मिलती तो शायद यहां के लोग सब्जी खाने को भी तरस जाते। आज भी आप यहाँ दो सौ रू में आराम से यहां तीनों टाईम खाना खा सकते हैं वो भी किसी अच्छे रैस्ट्रों में।
पर ये भी सच है कि एक दौर में बंगाल अपने बेहतर साहित्य के लिए जाना जाता था पर आज शिक्षा व्यवस्था समेत अपने मूल मुद्दों के लिए तरस रहा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि बंगाल की आधी से ज्यादा जनसंख्या दसवीं भी पास नहीं है। और पूरे बंगाल की जनसंख्या में सिर्फ 5% लोग ही ग्रेजुएट हैं। और ये वो लोग हैं जिनमें से आधे अब इस दुनियां में जीवित ही नहीं हैं।
देशी दारू की भट्टी में लम्बी लाईन लगाए यहां के पुरुषों का जीवन समय से पहले ही खत्म हो जाता है। यही वजह है कि सबसे जल्दी मृत्यू को प्राप्त होने वाले राज्यों में बंगाल का क्रमांक पहला है। राजधानी कलकत्ता शहर को छोड़कर आपको किसी भी शहर या गांव में ढंग के अस्पताल आपको नज़र नहीं आएंगे। अगर आपको कोई अस्पताल नज़र भी आ गया तो आप उसे अंदर जाकर देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि आपके यहाँ के खण्डहर या श्मशान इससे कई गुना बेहतर हैं।
रोज़गार की तो बात ही मत कीजिए क्योंकि कारखानों व कम्पनियों की बातें तो यहां की हुकूमतों ने भी नहीं की। मज़दूरों के अधिकार की बात करने वाले सी.पी.एम संगठन ने पैंतालीस साल तक इस कदर अपने मज़दूरों का साथ दिया कि मालिकों को कंपनी बंद करके दूसरे राज्यों का पलायन करना पड़ा। वहां के कारखाने को आप तलाश करने निकलेंगे तो उन्हें बस आप इतिहास के पन्नों में ही पाएंगे। सोच कर देखिए 70 % पुरुष तो सिर्फ मज़दूर हैं इस राज्य में.. जो संपूर्ण भारत के कारखाने में उम्मीद से ज्यादा भरे पड़े हैं। जिन्हे ना रहन सहन का ढंग है और ना ही बेहतर खान-पान की ख्वाहिश बस ज़िन्दगी का बोझ लिए जिये जा रहे हैं।
नारियों को देवियों सा सम्मान देने वाले भारतवर्ष में इस राज्य का नाम न ही लिया जाए तो ही बेहतर है महिलाओं की ज़िन्दगी के बारे में जानेंगे तो आपकी आंखें गुस्से से लाल और शर्म से गीली हो जाएंगी क्योंकि संपूर्ण विश्व में मानव तस्करी व देह व्यापार की सबसे ज्यादा सप्लाई किस राज्य में होती है ये जानने गए तो पश्चिम बंगाल उसमे अव्वल आएगा। अगर आप इतिहास टटोलने की कोशिश करेंगे तो पाएंगे कि जिस जिस राज्य में कम्युनिस्ट पार्टियों ने सत्ता सम्भाली है वहां धड़ल्ले से महिलाओं व लड़कियों की खरीद फ़रोख्त होती रही है। फ़िर चाहे वो पश्चिम बंगाल हो या केरल इसमें कुछ नया नहीं है। तलाशने पर इस राज्य में कुछ शहर ऐसे भी मिल जाएंगे जहां मां बाप स्वयं अपनी बेटियों का रातों का सौदा करते हैं। और अगर आपके पास ठीक ठाक पैसा है तो आप लड़की को सीधे खरीदकर भी ला सकते हैं। यहाँ से खरीद कर कुछ लोग उन लड़कियों को अपनी रखैल बना लेते हैं और कुछ राजस्थान व हरियाणा जैसे महिलाओं की कमी से जूझते राज्य के लड़के अपनी पत्नी बना लेते हैं। पर एक खरीदी हुई लड़की से किस तरह का सुलूक़ होता है इसको शब्दों में उतारना शर्मनाक भरा है क्योंकि हक़ीक़त आप भी बेहतर जानते हैं।
हावड़ा का 'सोनागाछी' पुणें का 'बुधवार पेठ' मुबई का 'कमाठीपुरा' दिल्ली का 'जीबी रोड' तो सिर्फ विश्व के गिने चुने फ़ेमस वैश्या बाज़ार हैं अगर आप इनमें से कहीं भी जाकर देखें तो वहाँ आपको सिर्फ बंगाली लड़कियों का बोलबाला दिखेगा।
जहाँ देश कितनी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और महिलाएं मर्दो के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं वहाँ आज भी इस राज्य में 16 साल की औसत आयु है जब लड़कियों की शादी कराई जाती है.. सुनने में बेशक़ अटपटा लगे पर यहाँ नाबालिग लड़कियां मां बन जाती हैं और प्रशासन चैन की नींद सोता रहता हैं। क्योंकि जच्चा व बच्चा उनके स्वास्थ्य होने की चिंता न तो माँ-बाप को है नाही प्रशासन को...किसी को कोई परवाह नहीं। यहां पैदा होने वाली पहली लड़की नाबालिग हाउस वाईफ़ बनती है और हर दूसरी औरत वेश्यावृति की राह में जाती है।
क्योंकि इस राज्य में अच्छी नौकरी के सपने देखना गुनाह करने बराबर है। राजनीतिक विद्वान तो अपने अपने हिसाब से इसकी तारीफों के पुल बांध देंगे पर गहन सोच विचार करने पर भी आप शायद ही आप बता पाएं कि यह राज्य किस चीज़ के लिए प्रसिद्ध है। इसके कारोबार क्या हैं ? खानपान क्या है ? फिर अंत में आप चाय बागानों का जिक्र कर देंगे।
हर शख्स की बुनियाद ज़रूरते हैं रोटी.. कपड़ा.. मकान पर हैरान कर देने वाला ये है कि आज भी बंगाल को इनके लिए लम्बा संघर्ष करना पड़ रहा हैं। अब अगर मां दुर्गा को लग रहा है कि उसकी बेटी के हांथों में बागडोर अभी रहनी चाहिए तो शेरावाली का जयकारा लगाकर उनकी इस इच्छा का सम्मान कीजिए ।।