अंधेरी रातों मे उजाले की रोशनी जला रहा हूं, हार कर भी खुद को जीत का एहसास दिला रहा हूं।
दरवाजे जंग खाए जा रहे है कामयाबी के, मैं तालो में चाबियां घुमाए जा रहा हूं।
ना जाने किस मंजिल की तालाश में हूं मैं, अनजाने सफर पर बस चलता जा रहा हूं।
लोग कह रहे है तो सुमुद्र है, किसी को क्या पता कि एक तालाब सा सूखता जा रहा हूं।।
मायूसी इस कदर है की हर मौड़ पर इंतजार में है मेरे, मैं उसी से पता पूछकर आगे बढ़ता जा रहा।
लक्ष्य कुछ नहीं है जिंदगी का, फिर भी ना जाने किसी कटी पतंग की डोर से बंधा उड़ता जा रहा हूं।
दिल को यकीं दुला रहा हूं कि मैं खुश हूं, पता नहीं दिल विश्वास दिला रहा हूं, या दिमाग को झूठा करा रहा हूं।
किसी रोज चांद सा चमकता था मैं, पर अब तो शाम के सूरज की तरह डूबता जा रह हूं।।
सपने निलाम है मेरी और खुशियां गिरवी रखी है, मेरी औकात देखो अब आसुओं का भी सौदा करने जा रहा हूं।
कमी तो किसी चीज़ की नहीं है मुझे, ना जाने किसकी तालाश में बंजारा सा घूमता जा रहा हूं।
ना जाने क्या दुश्मनी है मेरी और वक्त की, ये मुझे मुझ मुझसे से दूर या मैं अपनो से दूर जा रहा हूं।।